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________________ १३८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । समय हजारों पशुओंका वध करते हैं। आधा मांस देवीको चढ़ाते हैं और यह प्रसाद है ऐसा कहके लोगोंको बांटते हैं ! खूनका तिलक लगाते हैं। और जनमानोंसे रुपया पैसा वगैरह दक्षिणामें लेते हैं। यहांका दृश्य बड़ा भयानक है । गोहाटीसे मोटर पलासवाडी जाती है। (२२९) पलासवाडी। ___ यहांपर १ मंदिर, २० घर दि. जैन व पाठशाला है । यहां पर बढ़ियासे बढ़िया रेशम-एरंडीका लाखों का व्यापार होता है । निसमें जीवघातका कुछ ठिकाना नहीं है। इस हिंसक व्यापारके व्यापारी मारवाड़ी ही हैं । यहांसे २० मीलके चक्रमें बहुत मारवाड़ियोंकी वस्ती है । यहांसे गोहाटी आवे । टिकट २) लगता है। डिम्मापुर उतर पड़े। (२३०) डीम्मापुर (मनीपुररोड)। यहांपर १ मंदिर व कुछ घर दि. जैनके हैं। यहांसे मोटर, बैलगाड़ीमें ९२ मील मनीपुर शहर जाना होता है । बीचमें बड़ा भारी शहर है । बहुत ग्राम पड़ते हैं । (२३१) मनीपुर शहर । यह शहर बहुत अच्छा है। १ दि. जैन मंदिर व बहुत घर दि० जैनके हैं। कपड़ा मादिका व्यापार खूब होता है । देशमें बहुत माल जाता है । यहांसे आगे बड़े भयानक जंगल और पहाड़ मिलते हैं । उसमें भील लोग बहुत रहते हैं । इसको तिब्बत देश बोलते हैं । तिब्बतके पहाड़ोंपर कभी कैलाश भी दीख पड़ता है। मागे नेपाल भाता है। इसका उल्लेख आगे करेंगे वहांसे जानना। लौटकर डिम्मापुर भावे । टिकट तनसुखियाका लेवे ।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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