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________________ ANA ४८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । उसको हमारा मन वचन काय, कृत कारित अनुमोदनासे नमस्कार हो । चौथी टौंक ज्ञान कल्याणकका स्थान है। यहांकी यात्रा करके तलेटी जुनागढ़ आवे । फिर यहांसे आगे वेरावल स्टेशन भाता है। कोईकी जानेकी इच्छा हो तो नावे नहीं तो वापिस पालीताना आना चाहिये । टिकट का ॥) देकर बीचमें जेतलसर जंक०, या धौला रेल बदलकर फिर शवजय जावे | अगर कोई भाईको आगे राजकोट, जामनगर, द्वारका, बटवान, वीरमगांव, मेसाणा, अहमदावाद, निधर जाना हो उघर जावे। इनका वर्णन ऊपर किया है वहांसे जानना । जूनागढ़से वेरावलका १॥) टिकट है। (७९. ) वेगवल । स्टेशनसे नजदीक ग्राम है। कसबा अच्छा है। यहांसे आगे नानेको रास्ता नहीं है। चारों तरफ समुद्र लगा है । अग्निबोट, जहाजोंसे यहांसे बहुत माल बंबई, मेंगल्टर, कलकत्ता आदि शहरोंमें जाता है । बोट-जहानसे आगे जानेका रास्ता है । समुद्र के बीचमें यह टापू है । समुद्र देखने योग्य है । गांवमें ४ वैष्णव धर्मशाला हैं। वैष्णवयात्री बहुत आते हैं। ग्रामसे पूर्वकी तरफ समुद्रके किनारे सोमनाथका मंदिर और मूर्ति है। (८०) सोमनाथ । हिन्दुस्थानमें यह एक प्रसिद्ध तीर्थ हिन्दुओंका था। अब बिगड़ गया है। हजारों यात्री भाते हैं। सूर्य-चन्द्र ग्रहणमें २० लाख तक हिन्दू यात्री इकट्ठे होते थे ! पहिले यहांपर सोमनावका बड़ा मंदिर मूर्ति व नादिया थे । मूर्तियों और नादियोनि नोंका जवाहरात लगा था। विक्रम सं. १०२६ में बादशाह
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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