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जैन तीर्थयात्रादर्शका [४७ थोड़ा कठिन है । सो धीरे २ संभव २ कर चढ़ना चाहिये। फिर पांचवी टोकके कुछ नीचे तक डोलीवाला लेजाता है। फिर ऊपर पांव २ जाना पड़ता है। यहां भगवान नेमिनाथका मोक्षकल्याणक हुआ था। यहांपर २ चरणपादुका व नीचे एक प्रतिमा पहाड़के पाषाणमें ग्वुदी हुई है। ये तीर्थरान वृत्तान्त तथा मादमबावा श्री नेमनाथ मादि नामसे जगत प्रसिद्ध है। वहांपर जैन-वैष्णव ( हिन्दू ), मुपलमान आदि मब नातिके लोग तीर्थ करने को आते हैं । इमकी टोक २ पर गुपाई गवा रहते हैं । सो मब चढ़ी हुई सामग्री वे ही लोग लेते हैं । और जातिके लोग यात्राको आने हैं उनमे कुछ रूपया-पैसा लेकर “ तेरी यात्रा सफल हुई " इस प्रकारका अ शीर्वाद देते हैं । जैनी भाई भी जो कुछ रुपयादि चढ़ाते हैं वह भी यही लेलेने हैं ! यहांकी वंदना करके लौटने समय वैष्णव लोगों की गोमुग्वी आती है । करीव २ मील होगी। वहांमे राम्ना उ.पर मीदियों में लगा हुआ है । उधर गम्ने में उन्हीं लोगोंका लीलाकुंड, हनुमान घाग, देखता हुमा ११॥ मील नीचे तक चला आना चाहिये । फिर शेषावन आता है। शेषावनमें १ कोट १ छत्री २ चरणपादुका हैं। यह बन बहुन मणीक है। देखने ही 'चत्त बुश होनाता है। यहां श्री नेमिनाथका तपाल्याणक हुआ था। और मब गिरनार पर्वतसे संबु प्रद्युम्न, अनिरुदकुमारको आदि ले भगवान पर्यंत ७२ करोड़ ७ सौ मुनि कर्म काट मोमको पधारे हैं । और पांचवी से श्री. नेमिनाथ मोक्ष पधारे है। और राजुल अपनी गुफासे स्वर्ग गई हैं। भगवान् नेमिनाथरे, उप-ज्ञान-निर्वाण इसी परम पवित्र स्थानपर हुए थे।