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जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुहको साफ कराया और धर्मशाला, मंदिर उन्हींकी कोशिशसे बना है । इन सब कामोंमें लक्षों रुपया खर्च हुआ है । हाल तक ये क्षेत्र प्रतापगढ़ राजपूताना (मालवा) के पंचोंकी कमेटीके सुपुर्द है। देखना करना सब कमेटीके ही सुपुर्द है । ऐसे धर्मात्मा पुरुषों को धन्यवाद है। यहांसे दर्शन पूजन करके फिर आगे जाना चाहिये । आध मील जाने के बाद दूसरी टोंक और १ मील जानेके बाद तीसरी टोंक भगवान के तप कल्याणककी आती है। जिसपर भगवान नेमिनाथने तप किया था। यहां पर चरणपादुका है। १ गुपाईनीका मकान है। बीचमें एक शासनदेवी अंबिका देवी । निमको दिगम्बरश्वेताम्बर मतके झगड़ेमें श्री स्वामी कुन्दकुन्द महारानने आराधना करके उसके मुंहसे यह बुलवाया था कि "दिगम्बर मत सच्चा है" मगर देव एक वक्त बोलने हैं, मो देवीके बोलनेको बहुत लोगोंने नहीं सुना था। इसलिये फिर दि.० इवे. दोनों का हक ठहरा । यह कथा स्वामी कुन्दकुन्दनीके चारित्रसे जानना चाहिये । यथासंघसहिन श्री कुन्दकुन्द मुनि, वंदन हेन गये गिरनार । वाद पड्यो जहां संशय मतसे, साक्षी रची अम्बिका सार ।। सतपथ है निर्ग्रन्थ दिगम्बर, प्रगट मरि नहां कहें पुकार । सो गुम्देव वसौ उर मेरे, विघन हरण मंगल करतार ।।२।।
यहांर एक साधु की धूनी और मकान है । अंबिका देवीका मंदिर देखकर तीसरी टौं की वंदना करके आगे चलकर १ मीलकी दूरीपर चौथी टौक है। यहां जाने का मार्ग कठिन है। सामय्यं हो तो जावे अन्यथा नीचेसे ही वंदना करके पांचवी पर जावे । चौथी कपर एक प्रतिमानी। पांचवीं टौंकाका रास्ता