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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२०३ (३५०) औंकारेश्वर । ग्राम अच्छा है । बीचमें नर्मदा नदी पड़ती है। इसलिये बहुत बाजार, धर्मशाला, महादेवजीका मंदिर इस तरफ हैं। नदीके उस पार जाना चाहिये । उसपर घाट, मंदिर, धर्मशाला, वानार मादि सब हैं। यहांपर औंकार महारानका मंदिर और मूर्ति है। यह यात्रा भी अन्य मतियोंकी उत्कृष्ट है । यहांपर पहाड़ोंमें साधु रहते हैं । इनारों यात्री आने जाते रहते हैं। हर समय यहांपर भीड़ रहा करती है । कोई कालमें यह मंदिर भी नैनियों का था। हालमें ओंकार महाराजका है । इस मंदिरको देखता हुआ आगे १ मील नदी किनारे२ पूछकर दूसरी नदीतक पैदल चले जाना चाहिये । फिर नावसे नदी उतरकर १ मील दूर सिद्धवरकूट जाना चाहिये। (३५१) श्री सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र । यहां ३ दरवाजा हैं, आप मीलके चक्रमे कोट खिचा हुमा है, भीतर बहुत धर्मशाला हैं। नौकर मुनीम रहता है । यहां कोठीकी तरफसे वस्त्र, वर्तन, लकड़ी, पानी सब मिलता है । सामानकी दुकान व रसोईघर है । एक तरफ नदी है। एक तरफ जानेका रास्ता है । दोनों तरफ जंगल है। कोटके भीतर ७ मंदिर हैं। जिसमें एक मन्दिर बड़ा है, उसमें दो वेदी हैं । यही मूलनायक मन्दिर है और बहुतसी प्रतिमा हैं। एक छोटे मन्दिर प्राचीन कालकी २ प्रतिमा महावीरस्वामीकी हैं। दूसरे २ मन्दिरमें प्रतिमा मुन्दर हैं। यहांसे थोड़ी दूर जंगलमें नदीके किनारे पहिलेका टूटा हुमा मन्दिर और खण्डित प्रतिमा हैं। मालीको साथ लेकर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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