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२८ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक। यहांपर कूपादि सब हैं । दूपरो धर्मशाला सेठ नथमल ओसवालकी भी है । आठआना सवारीमें तांगावाला लेनाता है। तीसरी धर्मशाला शहरमें है । जहाँपर इच्छा हो वहांपर ठहरना चाहिये । हरएक बातका आराम है। फिर एक आदमोको साथ लेकर शहरकी वंदनाको जाना चाहिये । यहाँपर कुल ५४ मंदिर ९० व चैत्यालय हैं। उनमें हजारों प्रतिमा रंगविरंगी विराजमान हैं। दिवाननीका मंदिर नमोनके भीतर है निममें ७२ प्रतिमा तीन चौवीसीकी पद्मासन विराजमान हैं जो बड़ी विशाल और शांत छमि हैं। यहांका सब दर्शन दो दिन में हो सकता है । फिर तांगासे ।) सवारी देकर घाटके मंदिरों की वंदनाको जाना चाहिये । वहां ७ मंदिर बड़े २ विशाल हैं। जिनमें सेकड़ों प्रतिमाएं हैं। दर्शन करके जयपुर लौट आना चाहिये । फिर सिलवट के बाजारमें जावें। वहां सैकड़ों प्रतिमा धातु-पाषाण स्फटिककी देखना चाहिये । अगर प्रतिमानी खरीदना हो तो जानकार आदमीको लेकर प्रतिमा निर्दोष देखकर खरीद लेवे । परंतु देखने अवश्य नावे। यहांपर एक भट्टारक महाराज रहने हैं उनसे भी मिलना चाहिये । यहां सब देशका हर किस्म का कपड़ा जेवगदि सामान मिलता है । फिर शहरका चौपट बाजार, सनदरबार, फौन, हाथी, गेडा, कचहरी, बाग, अनायबघर, आदि देखना चाहिये । इसका नाम जैनपुर होगा सो जयपुर होगया है । सांगानेर शहर टूटकर यह जयपुर वसा है । पहिले यहांपर राना प्रना भादि हजारों जैन थे। हालमें भी यहाँपर दि० मैन घर बहुत बड़ी संख्या हैं । बड़े २ -भावकार पंडित महापर होगये है जैसे-१ टोटरमल, रायमष्ट,