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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [९९ केवलज्ञान होनेसे देवोंने समवशरण रचा था। दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश हुआ था। शेष हाल पार्यपुराणसे जानो । यहाँपर एक पाठशाला, कुवा, वावड़ी, बगीचा इत्यादि हैं। चरणपादुका वेत जोतनेमें एक मालीको मिली थी। बहुत दिनतक मालीके पास ही रही। फिर मंदिर में विराजमान करदी गई है । यह बड़ा ही पवित्र म्यान है । लौटकर अलीगढ़ जावे । फिर बादको देहली नावे । यहांसे आगे फिर बुरना पड़ता है। अगर बरेली जाना हो तो इमी लाईनसे चला आवे; दम लाईनमें बरेली होकर लग्वनऊ, चली जाती है। (१७०) खुजा । यह भी बड़ा अच्छा गदर है। धर्मशाला है । बड़े२ मंदिर और सुन्दर प्रतिमा हैं । जैनियों के घर बहुत हैं। रानीवाले सेठ मेवाराम चंपालाल व्यावग्वाले आदि तीन भाई यहांपर रहते हैं। यहांसे एक रेल हापुड़ जाती है, मथुगका हाल उपर लिखा है । (१७१) देहली शहर ।। यहांपर छोटी बड़ी रेलवे मभी तरफमे आती जाती है । जहां तहां यात्री ना सकते हैं । देहरी शहर एक नामी प्राचीन शहर है । बादशाही समयमें हिन्दुस्थान की राजधानी रही थी। चारों तरफ कोट म्व ई दरवानाओंमे गोभित है । अंग्रेजी राज्यमें भी हिन्दुस्थानकी गनपानीका शहर है । गनाका तम्त यहींपर है । शहर बहुत लम्बा चौड़ा है। यहां करोड़ोंका व्यापार होता है, हर तरह का माल मिलता है. कारीगरीका काम यहांपर बढ़ियासे बढ़िया होता है। सेठ का कू वा अनारगली में धर्मशाला है, वहांपर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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