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________________ इम समय संसारमें अगणित मत प्रचलित हैं । और बहुतसे मनुष्य उनके भक्त देखे जाते हैं । यद्यपि वर्तमानमें किसी भी मतका मंचालक उपासक देव दृष्टिगोचर नहीं होता है बथापि उनके म्मरण-चिह्न वर्तमानमें मौजूद है, वे तीर्थोके नामसे पुकारे जाते हैं । और लोग उन्हीं स्थानोंको बड़ी भक्तिभावसे पूनते हैं। पंसारका प्रत्येक प्राणी सुख और आराम चाहता है, कोई भी जीव दुःख एवं कष्ट नहीं चाहता है । यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि जिस मतमें आराम रहता है, उसके अनुयायी बहुत होते है। परन्तु निम मतके अंदर आरामका स्थान नहीं, किसी बातका मुलाहना नहीं, इतनेपर भी उस मतमें दृढ़ता करानेवाला कोई व्यक्ति नहीं, उस मतसे लोग जल्दी गिर जाते हैं, अपनी इच्छानुसार मतको ग्रहण करके श्रद्धानमे भ्रष्ट होकर बहुत काल तक संसारमें घूमने हैं। यह बात निश्चित है कि काल दोषके प्रभावसे संक्लेशका कारण होनेपर भी उस मतके अनुयायी भले ही कम हों, पर उम सच्चे मतकी कीमत है । उसके अनुयायी मनुष्योंका जन्म सफल है । उसके ३ दृष्टांत है. १-पत्थर बहुत होनेपर भी एक रत्न भला है। २-मुम्ब हमारों पुत्र भी रहें परन्तु गुणी, विद्वान, धर्मात्मा एक ही सुपुत्र श्रेष्ठ है।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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