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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
( ३०० ) अतिशय क्षेत्र बावननगर । यह शहर पहिले बड़ा था, परन्तु अब छोटा है, एक दि० जैन धर्मशाला और एक बड़ा भारी कीमती मन्दिर है । उपमें पापाणकी १ हाथ ऊँची पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है । यहांपर भी दूर देशके लोग बोल कबूल चढ़ाने आते हैं ।
यहांका अतिशय - कोई फीउद्दीन बादशाहने यहांके मन्दिर व मूर्तियां तुडवा दी थी। सिर्फ यह एक पार्श्वनाथकी प्रतिमा अपनी पुत्रीक खेलनेके लिये रख ली थी। बादशाहकी पुत्री इससे खेला करती थी । किमी १ दिन राणीके पेटमें बड़ी पीड़ा हुई, अनेक इलाज करानेपर भी नहीं मिटती थी। फिर रात्रिको रानीने स्व देखा, कि- " अपनी लड़कीके खिलौना रूप जो यह प्रतिमा है उसको धोकर पानी पिओ, तो पीड़ा शोघ्र मिट जायगी ।" ऐसा करनेसे रानी अच्छी होगई । ऐमा प्रभाव देखकर राजाने बड़ा पश्चात्ताप किया और प्रतिज्ञाकी कि आजसे किसीके देवताको नहीं सताउँगा । ये बड़े सच्चे होते हैं और अपने द्रव्यसे एक मंदिर 1
बनवाकर प्रतिमाको वहां पर स्थापित करदी और कुछ मंदिर के लिये भीविका भी लगा दी । वह अभीतक चलती है । भंडार व पुजारी रहता है। चार घर दि ० जैनियोंके हैं। यात्रा करके बीजापुर लौट आवे । बीचमें गाड़ी होटगी बदलकर शोलापुर उतर जाना चाहिये । ( ३०१ ) शोलापुर शहर ।
स्टेशनके पास में अन्यमतियोंकी धर्मशाला है । शहर में २ मील दूर दि० जैन धर्मशाला है । ४ मंदिर बढ़िया और प्रतिमा बहुत हैं। १ मंदिरके भीतर जमीन में मौहरा है। प्रतिमा भी है।