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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [६५ टेड़ा है। यहां एक मेढ़ेके जीवको मरनेके समय मुनिराजने धर्मध्यान सुनाया था। वह मरकर देव हुआ । सो वह इसी पहाड़का रक्षक शामनदेवता हुआ था । इसलिये उक्त दोनों कारणोंसे इसको मेदागिर कहते हैं। प्राचीनकालमें बहत मुनिगण ध्यान करते थे। पहिले समयमें यहां मोतियों की वृष्टि हुई थी। इस कारण मुक्तागिरि भी कहते हैं । यहांकी वंदना करके फिर परतवाड़ा आजाना चाहिये। यहांसे II) सवारीमें मोटरसे अमरावतीको जाना चाहिये। अमरावतीको रेलका रास्ता बदनेरा होकर आता है। मगर इममें चक्कर बहुत है । और किराया भी २) लगता है । इसलिये परतवाड़ासे मोटरमें सवार होकर अमरावती आना चाहिये । परतवाड़ा
और अमरावतीका रास्ता १५ मील पडता है। रेलसे जानेसे रुपया भी ज्यादः और चक्कर भी पड़ता है।
(१०८) अमरावती शहर । नागपुर वर्घाके आगे बदनेरा स्टेशनसे आगे -) टिकट लगता है। स्टेशनसे शहर लगा हुआ है। यहांकी दि. जैन धर्मशाला १ मील पड़ती है। -) सवारीमें तांगावाला परवारके मंदिरमें लेनाता है । सो धर्मशालामें ठहर जाना चाहिये । यह परवारोंका ही बड़ा खुबसूरत मंदिर है। यहांपर ( वेदी हैं। जिसमें धातु पाषाणकी बहुत मनोज्ञ अनेक प्रकारकी प्रतिमा हैं। यहां एक मलमारीमें १५ प्रतिमा स्फटिकमणि, १ मूंगा, १ मोती, २ चांदी, १ हीराकी हैं सो सबका दर्शन करें । बादमें एक भादमीको साथ लेकर ४ मंदिर बुधवारी, ४ शुक्रवारीमें हैं । और घर२ कुछ चैत्याग्य हैं। एक मंदिरके भौंहरेमें भीतर बहुत प्रतिमा है। सबका