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जैन तीर्थयात्रादक।
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(१७) भोपाल । यह स्टेशन खंडवा, कानपुर, बंबई लाईनके बीचमें पड़ता है । यहांपर माने जाने का और रास्ता ननदीक नहीं है । इसीलिये मक्सीनीकी यात्रा करके जानेसे ठीक रहता है। किसीकी इच्छा हो तो नावे नहीं तो लौटकर उन आनावें । यह शहर स्टेशनसे ३ मील पड़ता है, शहरमें एक धर्मशाला, १ मंदिर तथा दो त्यालय हैं । प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ और प्राचीन है। यहांके भाई गाना बनाना अच्छा मानते हैं, यहांपर हमेशा पूजन भजनका ठाठ रहता है। यहांगर दि. जैन घर बहुत हैं, स्टेशनके उपर अन्यमतियों की धर्मशाला ननदीक है। यह शहर प्राचीन बहुत ही बढ़िया है, राना भोजने इसको बसाया था। इसलिये इसका नाम भोनपाल था परन्तु अब अपभ्रंशमें भोपाल होगया है। यहांपर अंग्रेजी सेना रहती है। २ मल लम्बी १ मील चौड़ी एक झील है। चारों तरफ कोटसे घिरी है, विशाल किलासे शोभित है। शहरके बाहर एक तीनारा वस्ती है, दोनों तरफ दो फतेहगढ़ हैं। गदमें बेगमसा० रहती हैं, यहां बेगममा का महल, जुम्मामसजिद, टकशालघर, तोपखाना, मोतीमसनीद, खुदासीया बेगमबाटीका जनाना, हिन्दी स्कूल, अंग्रेजी स्कूल आदि चीजें देखने योग्य हैं। यहां रामा भोमके समयका बहुत बड़ा तालाव है। चौतरफ पहा. उसे घिरा हुमा है, इमी तालावके होनेसे इसको ताल भोपाल भी कहते हैं। इसलिये यह तालाब भी देखना चाहिये, यहांसे १० मीलकी दुरीपर समसागढ़। तांगावाला १)ता, यहां नाना चाहिये।