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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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विपुलाचल पर्वतपर ७ मंदिर हैं । खोज२ कर शांतभाव से दर्शन करना चाहिये ।
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वैभारगिरिपर श्रेणिक गुफा है। पहाड़ ऊपर थोड़ी दूर भद्रकुमार शालिभद्र का छोटासा मंदिर व श्रेणिककी गुफा ऊपर है । सबकी पूजा वंदना करें। इन पहाड़ों से कोई २ मुनि स्वर्ग भी गये हैं । २ मुनि मोक्ष भी गये हैं। ऐसा शास्त्रों में लेख है । इसलिये जैनियोंका तो पूज्यस्थान, अतिशय क्षेत्र सिद्धक्षेत्र और महावीर तीर्थराज भी है। पहाड़ के नीचे वैष्णवोंके बड़े मंदिर, नदी व कुंड हैं । मो सब मनके लोग वंदना को आने हैं । थोड़ी दूर एक मुसलमानकी कबर है । वपर मुसलमान भी आते जाते हैं | कुंडोंने पानी बहुत गरम, थोड़ा गरम, बहुत ठंडा तीनों तरहका रहता है। इनमें स्नान करनेमे रोग, व्याधि, शरीरमल, परिश्रम नष्ट होन में हैं ! इसलिये इस क्षेत्र, कुंडों की महिमा जगत प्रसिद्ध है। स्टेशन के पास राजगृही नगर ठीक है । पहिले बहुत प्रसिद्ध नगरी थी। मो अब बिलकुल छोटी रह गई है । यहांपर २ दि० धर्मशाला, २ कुआ, मंदिर, मैदानका सुभीता है। एक मंदिर देहलीवाले भाईका और एक गिरीडीवालेका बहुत बढ़िया बनाया हुआ है । इनके आगे एक श्वे ० धर्मशाला व इत्रे० मंदिर है । श्वेताम्बरीय मंदिर में २ प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं । सबका दर्शन करके स्टेशन लौट आये। यहां मेला भी बड़ा भारी भरता है । टिकटका १) देकर रेलसे बिहार आवे । दुपरे बैलगाड़ीके रास्ते से पावापुरी, गुणावा, नवादा, कुंडलपुर भी आना-जाना होता है । यह रास्ता यात्रियोंके सुभीनेपर निर्भर है। इनका ऊपर उल्लेख