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१७०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मठ है। पद्मावतीदेवीका प्रसिद्ध मंदिर है। इस देशमें उसको मानते हैं इसको इमच पद्मावतीके नामसे पुकारते हैं।
भट्टारक महाराज ऐसे विकट जंगल, पहाड़में जिन मंदिरोंकी रक्षाके लिये वसते हैं । धन्यवाद ! महाराजका तोपखाना, नौकर हस्ती, घोड़ा, बगीचा, नीचे १ मंदिर भी मठमें है। महाराजके भंडारमें मूलबद्री जैसी हीरा, पन्ना, पुष्पराज, आदिको १८ प्रतिमा हैं। उत्तरप्रांत सरीखी प्रतिमा लाकर अपने देशमें बिराजमान करे, ऐसा धर्मात्मा धनाढ्य कोई नहीं है। महाराजको कुछ रुपया देनेसे दर्शन करा देते हैं। भट्टारक वयोवृद्ध विद्वान् हैं। यात्रियोंकी पाहुनागति करते हैं। रसोईका सामान अपने भंडारसे देते हैं । जीमनेवालोंको अपनी रसोई जिमाते हैं। महाराजने एक पहाड़ खुदवा कर बगीचा लगाया है। उसमें नाना प्रकार पुष्पादि हैं। उस बगीचेमें १ प्राचीन मंदिर निकला है। एक प्रतिमा भी निकली है । बगीचेमें उसका दर्शन अपूर्व है। फिर बाहर एक बड़ा मंदिर और प्राचीन प्रतिमा है । पद्मावतीके मंदिरकी परिक्रमा भी प्रतिमा विराजमान हैं। पासमें १ धर्मशाला, कुआ, व वनकी शोभा अद्भुत है। आगे १ मंदिर पार्श्वनाथका है। आगे एक पंचवस्ती नामकी बड़ी मंदिरकी वस्ती है। उसमें कुल ७ मंदिर व २० छोटी-बड़ी प्रतिमा हैं। एक बड़ा भारी मानस्थंभ है । उसपर प्रतिमा व शिलालेख है। पांच शिलालेख दूसरे हैं। मंदिरके पीछे जंगल है। भागेके तालाबमें कमल फूल रहते हैं। तालाबके पीछे महाराजके बगीचा, नारियल, सुपारी, पानस, माम इत्यादिके वृक्ष हैं। और पद्मावतीनीके मंदिरके पीछे पहाड़ ऊपर भाष मील चढ़