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________________ १५४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुनि, मंदिर व जिनधर्मियोंकी बड़ी रौद्रदशा दिखलाई गई है। यहां पर कोई कालमें दुष्ट राजा हुआ था । उसने जैन मुनियोंकी बड़ी बुरी दशा की थी। जैनियों की मूर्तियां तुडवा डाली । उनका दर्शन कुंडमें उकेरकर दिखाया है। यह दृश्य देखनेसे परिणाम एकदम दुःस्वरूप होनाते हैं । परन्तु ऐसे चोर उपसर्ग होनेपर भी जिनधर्मी महात्मा जरा भी नहीं विचलित हुए । यहांका दर्शन किये विना दृढ़ विश्वास नहीं हो सकता है । यहांका ज्यादः हाल कहांतक लिखू । देखनेसे ही मालूम होगा। टिकट मीषा धनुप्यकोटीका लेना चाहिये । २) लगता है। पहिले बीचमें रामेश्वर पड़ता है। धनुष्यकोटी पहिले जाकर लौट आवे । (२५९) धनुष्यकोटी। रामेश्वरके मागे समुद्र के बीचके मंदिरमें राम-लक्ष्मण-सीताकी मूर्तियां हैं । सागरवादि दोनों धनुष्य पथमें खुदे हुए हैं । रामचंद्रजी यहां तक सीताके लिये पुल बांधकर आये थे। फिर देव भाकर रामचंद्रादिको लंकामें लेगया । ऐसी कथा वैष्णव पुराणमें है। जैनियोंको अपने अनुसार मानना चाहिये । यहांसे आगे लंकापुरी बहुत दूर है । समुद्र होनेसे उस लंकामें गमन नहीं है पर अंग्रेजी लंकामे अग्निबोट द्वारा नासकते हैं। इसका विशेष हाल ज्ञात नहीं है। (२६०) कृत्रिम लंका। मामकल यही अंग्रेजी राज्यमें अच्छा शहर है। अग्निबोट जहाज जाते हैं। कोट-दरवाजा मनबूत और भारी २ बाजार है। बड़े देशोक व्यापारी रहते हैं। जैनियों का पता नहीं है। मनुष्य
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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