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१९०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । लगी हैं। यह रचना प्राचीन होनेसे व नैनियोंके न रहनेसे खंड. बंड होगई । पहाड़ ऊपर १ तालाव, व अंजनाकी मूर्ति है। यहांपर मिथ्याती लोग जाते हैं। गुफाओंका दर्शन करके नीचे लौट आवे । कुछ भंडार देकर नाशिक लौट आना चाहिये । नाशिक मानेवाले जैनीभाई भी यहांकी यात्राको नहीं आते हैं ! झट भागकर चले जाते हैं । नाशिकसे २२ मील व यहांसे ७ मील त्रम्बक महादेवका मंदिर है। यहांपर नाशिक आनेवाले हजारों अन्यमतो यात्रीगण हमेश आते-जाते रहते हैं । हमारे जैनी भाइ तो बहुत ही प्रमाद करते हैं । यहांसे मनमाड आवें ।
(१२१) मनगाड़ । स्टेशनपर १ बड़ी भारी हिन्दू धर्मशाला है। वहांपर ठहर जाना चाहिये । फिर यहांसे मोटर या ५० मील मांगीतुंगी जाना चाहिये। बीचमें मालेगांव, सटाना पड़ता है। पक्की सड़क मांगीतुंगी तक जाती है।
(३२२) मालेगांव । यह बादशाह के समयका ग्राम है । १ दि. जैन धर्मशाला, एक मंदिर, ४ घर नैनियोंके हैं। सेठ दगडुराम भागचंद्र काशलीवाल सज्जन पुरुष हैं। यहांपर हाथसे कपड़ा बुना जाता है। व्यापार अच्छा है। बाजार भरता है । १ श्वे. मंदिर, धर्मशाला
और बहुत घर श्वे. मारवाड़ियोंके हैं । मनमाड़से यह ग्राम २४ मील पड़ता है। यहांसे २२ मील सटाना पड़ता है । यहांसे मोटरसे धुलिया शहर भी जाना होता है । ३२ मील पड़ता है। १०) मोटर लगते हैं।