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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | १७६ ] 1 शहर में भी मंदिर और हैं । दो भट्टारकोंका मठ है- लक्ष्मीसेन a जिनसेनजीका | वहां पर भी मंदिर है। एक मंदिर मानस्तंभवाला बहुत प्राचीन है । बाहर मानस्तम्भपर ४ जिनवित्र हैं । कनाड़ी में शिलालेख है । मदिर में प्राचीन बहुत प्रतिमा है । उनमें ५ प्रतिमा बहुत विशाल हैं। सबका दर्शन करे। एक जिनमंदिर कंसारगली में अंबाजी मंदिरके पास है। यहां पर बड़ा भारी मंदिर है । फलफूलसे पूजा होती है। यह मंदिर भी देखने योग्य है । जैन मंदिरका दर्शन करके राजमहल, बाजार देखता हुआ ठिकाने लौट आवे टिकटका ) देकर " हातकलंगड़ा " स्टेशन उतर जावे । ( २९३ ) हातकलंगड़ा । किसीको ग्राम जाना हो तो जाय, आघ मील दि ० जैन मंदिर व कुछ घर दि० जैनियोंके हैं । अगर ग्राममें नहीं जाना हो तो स्टेशन से २ ||) रुपया में लोटा फेरीका किराया करके कुम्भोज बाहुबली पहाड़ पर जावे | बीचमें नेजा ग्राम पड़ता है। उसका भी दर्शन करलेना उचित है । हातकलंगड़ासे ७ मील नैजग्राम व १ मील पहाड़ ग्रामसे है । ऐसे कुल ८ मील हैं। पहाड़के नीचे कुआ व जंगल है । ऊपर दो धर्मशालाएं हैं । सीढ़ियोंसे पाव 1 मीलका चढ़ाव है। ऊपर १ कुआ और १ मंदिर रमणीक हैं । अनेक तरहकी प्रतिमाएं हैं। बाहुबली स्वामीकी प्रतिमा खुले मैदान में है । १ सहस्रकूट चैत्यालय भी है। यहांकी रचना अपूर्व व लाखों रुपयों की लागतकी है। बाहुबली स्वामीने यहांपर कुछ दिनों तप किया था इससे उनकी प्रतिमा स्थापित है । और इस पहाड़का नाम भी बाहुबली पहाड़ है। महांसे २ मील दूर कुंभोज ग्राम m
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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