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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | 1 [ १४१ लोगोंके बंगले हैं | यहां पर बड़े २ पहाड़ हैं । उनमें छोटीसी रेल जाती है। पहाड़ भी भीतर १०-१० मील तक खुदे हुए हैं । 1 यहांवर हरएक पहाड़ में तेल मिले हुए पत्थर निकलते हैं उनको पत्थरका कोयला कहते हैं। यहां से लाखों-करोड़ों मन कोयला निकलकर सर्व देशांमें जाना है । इसीसे रेल कारखाने वगैरह चहते हैं । हर किस्म कारखाने कोशोंतक देखने योग्य हैं । यहांके जंगल में केला, मनरा, चाय बहुत ही पैदा होते हैं । यहांकी वेळ तो यहांतक ही है । आगे ब्रह्मदेश आगया है । मो वहां रेल आकर पहाड़ में १० मोलपर ठहर जाती है । यहांसे लौट आना चाहिये | लौटनेपर बीचमें सीलीगुरी स्टेशनसे पूछकर १) टिक्का देकर दर्शनाला मी जामकते है । २३६) दार्जिलिंग पहाड़ । ( पहाड़ उभी रेल जाती है । शहर बहुत अच्छा है । अंग्रेजलोग रहते हे । नाहर और सुअर के बच्चे (पले हुए) लोगोंके साथ २ घूमने है | यहांको रचना देखने योग्य है । अजब २ रचना है। भागलपुर, बनारस, पारवतीपुर, भटनीसे भी कटीहार गाड़ी जाती है । पटना- बांकीपुर - नदी उतरकर मोनपुर जंकशन से हाजीपुर आदि होकर (मुकाम), मोनपुर लाईन दलसिंह सराई होकर ' या उतरकर मुजफ्फर आदि स्टेशनोंसे इन लाईन में गाड़ी बात हैं । सब हाल पूछकर सीतामंडी स्टेशन उतरकर मिथिलापुरी जाना चाहिये । इस जगह पर हजारों वैष्णव लोग यात्राको आते हैं। पूछने पर जल्दी पता लगता जाता है। यहांपर मैं खुद नहीं
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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