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________________ १४०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । माटीको साफ करके मोम बनाया जाता है । वह विलायत जाकर खिलौना रूपमें यहांपर आता है। मोमबत्तीके कारखाने यहीं भी बहत हैं। चौथा नंबरका तेल लकड़ियों वगैरहमें लगता है। यहांपर कनस्टर आदिका कारखाना है। केला नारंगी यहां पर बहुत पैदा होते हैं । इस देशमें बड़े २ पहाड़ हैं । उनके बीचमेंसे अंग्रेनोंने रेल निकाली तथा ग्राम भी वसाये हैं। जगहर पर गोरा लोगों के बंगले बने हुए हैं । सिंहादि पशु यहां पर बहुत रहते हैं । यहांसे १ रेलवे परशुगम कुंड जाती है। एक रेलवे आगे जाती है। (२६५) परशुगमकुंड । डीगबोईसे कुछ दृर पर रेल जाती है । फिर ६ मील पहाड़ीमें पैदलका राम्ता है । बड़े२ पहाड़ और जंगलकी बीचमें ३ कुंड हैं। उनमें क्रमसे उप्ण, अनि उष्ण, अति शीतल पानी रहता है। यहांपर महादेवनीकी मूर्ति है। छोटी२ तीन देहरी हैं। पहाड़से पानी बहुत पडना है। यहांमे एक नदी निकली है । फिर लौटकर रेलमें चढ़कर डीगबोई उतर पड़े ! आगे डीगबोईसे रेल जाती है। कापाड़ी स्टेशन पड़ता है । यहांपर लकड़ीका बहुत बड़ा कारखाना है । हजारों चीजें बनकर दिशावर जाती हैं । पर्वतमेंसे माटी निकलती है। उसको गला करके लोहा बनाते हैं । हजारों चीजें बनती हैं। यहांके दोनों कारखाने देखने योग्य हैं । यहांपर मंदिर नहीं है । ४ घर नैनियोंके हैं। रायबहादुरकी दूकान और नौकर हैं । यहांसे 12) देकर ४ स्टेशन आगे एकई स्टेशन है । वहींतक ही रेल जाती है। वहां ग्राम है । साहब
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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