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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४९ राज्यमें पहिले नंबर कलकत्ता, २ बंबई, ३ देहली, ४ मद्रास है। यहांसे १ रेलवे रायचुर होकर पूना बम्बई तक, १ कलकत्ता, १ देहली, इत्यादि सब दिशाओंको जाती है। एक बड़ी लाईन, छोटी लाईन ऐसे दो स्टेशन हैं । बड़ी स्टेशन के मामने हिन्दु धर्मशाला है । वहांपर ठहर जाना चाहिये । सामान रखकर शदरको ट्राम गाड़ीमें जाना अच्छा है । पैसे भी कम लगते हैं। शहरमें दि० नियोंकी एक धर्मशाला व मंदिर हैं। संपादक अंग्रेनी नगनटका मकान नं. ४३६ मिन्ट स्ट्रीटमें है। मोतीबानाग्में श्वेताम्बरी २ मंदिर हैं। एक मंदिर बाब ओंकान्ट मा० के मकान पर श्वेतांबगे बगीचाके पास है । पर शहरमे २ मोल पड़ता है। हर देखकर स्टेशनपर भावे । टिकिटका 11-) देकर मारकोनम्का लेलेना चाहिये । यहांसे १ गाडी रायचुर जाकर मिलती है। ( २५२ ) गयचुर शहर ।। स्टेशन के पाम हिन्दुओंकी धर्मशाला है । पासमें कुछ बानार, कुआ व जंगल है। गइर २ मील दूर कोटसे घिरा हुआ है। शहर बहुत बड़ा है । १ मंदिर व कुछ घर दि. जैनियोंक हैं, मामान सब मिलता है, एक तालाव, १ गढ़ है। यहांसे एक रेलवे मद्रास जाकर मिलती है । टिकट ५) है। एक रेलवे “ कुर्दुवाड़ी" ( बारमी रोड ) शोलापुर घोड होकर पुना-बम्बई तक जाती है। (२५१) आरकोनम जं० । यह स्टेशन रायचुर-मद्रास लाईन व मद्रास बेंगलौर लाईनके बीच पडता है । यहांसे गाड़ी बदलकर टिकटका II) देवर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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