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________________ ८४] जैन तीर्थयात्रादर्शक। यहां दिन घर बहुत हैं। १ धर्मशाला है। यहांपर फिर तांगा मोटरसे या पांव२ चलकर ३ मील पक्की सड़क आदमीको साथ लेकर पपीरानी जावे। (१४०) श्री पपौराजी अतिशय क्षेत्र । यहां जंगलके बीचमें रमणीक मैदानमें चारों तरफ कोटसे घिरे हुए कुल ७६ मंदिर हैं । और बड़ी मने ज्ञ मूर्तियां हैं। यहां एक धर्मशाला, पाठशाला, कुवा, ८ मंदिर ? भौंहरा आदि चीजे हैं। यहां पहिले बहन अतिशय होता था। यहांका दर्शन करके टीकमगढ़ होता हुआ ललितपुर आवे। देलवाटा पपौरासे एक और रम्ना हटा हीरापुर भगवा होता हुआ ३० मील द्रोणगिरिजी नाता है । मो यहांसे भी सवारी आदिका प्रबंध कर नासक्त हैं। परन्तु राम्ता जंगली ठीक २ है । (१४१ ) दैलवाड़ा स्टेशन । म्टेशनसे २ मील ग्राम है। ग्राम छोटा होने से कुछ घर दि. नैनियोंके और १ मंदिर भी है। यहांसे किमी आदमीको साथ लेकर सिरोन जाना चाहिये । (१४२) अतिशयक्षेत्र सिरोनजी-(शांतिनाथजी) यह एक छोटासा ग्राम है। ४ घर दि. जैनियोंके हैं । यहांके जंगलमें एक बड़ा भारी कोट था। जिसके भीतर न जाने कितने मंदिर थे। जिन्होंकी हजारों प्रतिमा खंडित १ मीलके चकरमें नहांतहां पड़ी हुई हैं ! जिसको देखकर छाती फटती है ! एक दिन यह स्थान भी परमपवित्र था। जिसको किसी सौभाग्यशालनीके पुत्रने कराया होगा। कितना धन खर्च किया होगा।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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