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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [८५ इस दुष्ट कालकी करालता देखो । हाल में यहां कोई एक जैन नहीं है । एक दूमरे कोटमें वावड़ी, धर्मशाला और १ शिलालेख बहुत प्राचीन लिपिका ग्बुदा हुआ म्पष्ट अक्षरों में है। पांच मंदिरजी हैं। उनके चौकमें चारों तरफ खंडित अखंडित प्रतिमा विराजमान हैं। एक मंदिरमें १ कुछ अंग वंडित १५ हाथ उंची खगासन शांतिनाथकी प्रतिमा विराजमान है। यहां की यात्रा करके स्टेशन वापिस भाना चाहिये। फिर टिकटका |-) देकर तालवेट उतरना चाहिये। (१४३ ) तालबेट शहर । म्टेडानसे १।। मील दूर ग्राम है। यह भी प्राचीनकालका शहर है। यहां एक मंदिर और ३० घर दि० ननियोंके हैं । यहांपर ताल-जालाव और बेट- गट बड़ा है इसलिये तालवेट इमका मार्थक नाम है । यहांका तालाव और गढ़ अवश्य देग्वना चाहिये । यहांसे किमी मवारी या आदमीको साथ लेकर पवा छह मील जाना चाहिये । बीचमे २ तालाव और १ गांव पड़ता है । पवा जाने-मानेका दृमरा रास्ता सुगम है । नालवेटसे : स्टेशन आगे ) टिकट देकर वमई उतरकर फिर यहांसे भी पक्की मड़कसे ६ मोल पवानी आने-जाते हैं। तालवेट उतरनेसे तालवेट शहरका तालाव गढ़ देखने को मिलता है । इमलिये तालवेटसे ही आना-जाना ठीक रहता है। (१४४) श्री पवानी अतिशय क्षेत्र । ___ यह ग्राम छोटासा है। कुछ दि० जेन व १ चैत्यालय है । यहांसे १ मील जंगलमें एक पहाडके नीचे कोट खिंचा हुआ है। भीतर एक धर्मशाला है, एक नवीन मंदिर है । भौहरा प्राचीनका
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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