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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
( ८३ ) घोघा ।
यह भी प्राचीन कालका बड़ा भारी शहर है। टापू समुद्रके बीच में है । प्राचीन खण्डर, महल, मकान, तालाव, बाजार इत्यादि देखनेके काबिल हैं। कोट दरवाजा है । २-३ घर दि०जैन हूमड़ भाईयों के रहे हैं । ३ मंदिर बहुत बढ़िया हैं। बहुत प्राचीन प्रतिमा स्फटिकमणिकी २ छोटीं हैं। एक सहस्रकूट चैत्यालय और १ धर्मशाला हैं | यहां से लौटकर भावनगर सीहोरा गाड़ी बदल कर पालीताना आवे |
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( ८४ ) पालीताना ।
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स्टेशन से १ मील की दूरीपर १ दि०जैन धर्मशाला है। पासमें नदी भी बहती है । तांगाका किराया ) सवारी बगता है । सो यात्रियोंको यहां ही ठहरना चाहिये । नदीके उस तरफ शहर, बाजार, राजस्थान, बाग-बगीचा देखने योग्य है। आगे एक दि० मंदिर और कारखाना है । वहां जाकर मंदिरका दर्शन करे | शहर देखकर कुछ मामान खरीद लेना चाहिये । दि० मंदिर बहुत सुन्दर रमणीक है । जिसमें १ वेदीमें धातु-पाषाण, चांदी - स्वर्ण, की बड़ी छबिदार प्रतिमा बिराजमान हैं । १ शास्त्र भंडार और सम्मेद शिखर जी के पहाड़की भी रचना है । फिर सवेरे ४ बजे उठकर नित्य क्रियाओंसे निवटकर कुछ कंगालोंके दानके लिये पाई वगैरह लेकर एक आदमीको साथ लेकर रास्ते में अनेक श्वे० धर्मशाला देखता हुआ पहाड़की तलेटीमें जावे । दि० धर्मशालासे तलेटी १ || मील पड़ती है। पक्की सड़क है। हजारों लोग आते जाते रहते हैं। पहाड़की तलेटीके पास बंगला, वृक्षकी छाया,