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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५१ पानीका कुंड और प्याऊ है। यहां खाने पीनेका भी सामान मिलता है। यहांसे पहाइके उपर जानेको ३) रुपयामें डोली मिलती हैं। गोदी मजूर भी मिलता है। धर्मशालासे यहांतक आने-जानेका तांगा बैलगाडीका किराया सिर्फ ) है । यहांपर पाई, पैसा, भूना चना मादि सामान भी मिलता है। कंगालोंको बांटना चाहिये। फल, मिठाई, मेवा, पुडो आदि सब मिलता है। फिर यहांसे पहाड़ ऊपर जावे ।
(८५) शत्रुञ्जय पर्वतका वर्णन । इस पर्वतका चढ़ाव २॥ मीलका है । चढ़ने के लिये पत्थरकी सड़क बनी है। कहीं२पर सीढ़ियां भी है । पहाडका चढ़ाव सरल है । सस्तेमें कुड, मंदिर, छत्रि आदि बने हैं। आगे जाकर दो रास्ता फूटते हैं। पश्चिमकी तरफ श्वेताम्बरको राम्ता गया है। दुसरा सीघा राम्ता जाता है, मो मीधे राम्ने जाना चाहिये । आगेके राम्नेमें यात्रियों के गिरनेके भयसे कोट खिचा हुआ है। इसके आगे बड़ा भारी गढ़, धर्मशाला, पक्की सड़क, कुंड, तालाव, भोजनशाला और छोटे बड़े ३५०० साढ़े तीन बार मंदिर श्वेताम्बरके बने हैं। उनके मंदिर और प्रतिमा भी दि० भाइयों को देखना चाहिये। आगे जाकर १ मंदिर भाता है। वह मंदिर और प्रतिमा मनोहर है। यहांसे अर्जुन, भोम, युधिष्ठिर ये तीन पाण्डव और आठ करोड़ मुनि मोक्षको गये हैं। आगे वो रास्ता फूटकर गया था वहां भी एक बड़ा दुसरा गढ़ है। मंदिर है। मगर दोनों ही गढ़ ऊपर जाकर एक होगये हैं। रास्ता दोनों तरफ माने-जाने का खुला हुआ है। वहांके दि. मंदिरमें मुल नया प्रतिमा शांतिनाथ महारानकी है। और पात, पाषाणकी प्रतिमा