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________________ ( ३ ) संशोधन करके फिरसे लिखदें तो हम हमारे पुस्तकालय द्वारा इसको प्रगट कर देंगे। तब ब्रह्मचारीजीने यह बात स्वीकार की । और सं० १९८९ में लाडनूं में चातुर्मास ठहरकर इसको फिरसे दिखीव हमें प्रकाशनार्थ भेज दी परन्तु आपकी भाषा पुरानी होनेसे उसमें मंशोधन होनेकी व सिलसिलेवार इसकी पुनः कापी करानेकी व्यावश्यक्ता थी इसलिये प्रकट करनेमें विलंब होगया । फिर हमने केसली (सागर) नि० पंडित गुलजारीलालमी चौधरी जो धुलियान (मुर्शीदाबाद ) की दि० जैन पाठशाला में मध्यापक थे उनसे इसकी शुद्ध भाषा में कापी कराई । उसके बाद हमारे कार्यालय में कार्याधिकता से इसको छपाने का काम कुछ विलंबसे होसका तौभी अब यह ग्रन्थ तैयार होकर पाठकों के सन्मुख उपस्थित होता है । इस 'जैन तीर्थयात्रादर्शक' पुस्तकको यदि हिंदुस्तानभरकी जैन यात्रा या कोई भी एक यात्रा करनेवाले यात्री अपने पास रखेंगे तो यह एक मार्गदर्शकका कार्य देगी तथा यदि इस पुस्तकको मंगाकर इसका स्वाध्याय करेंगे तो घर बेटे २ हिन्दुस्तानभरके जैन तीर्थ तथा प्रसिद्ध २ स्थानोंका ऐतिहासिक परिचय मिल सकेगा । इस पुस्तकको विशेष उपयोगी बनानेके लिये हमने इसमें हिंदुस्थानका एक ऐसा नकशा हिंदी भाषा में बनाकर रखा है जिसके पास में रखने से हरएक यात्राका सीधा व सरल मार्ग मालूप हो सकेगा । हम तो यहांतक कहते हैं कि इस मात्र एक नक्शे को ही पास में रखने से कोई भी अपरिचित भाई अकेले ही हरएक यात्राको
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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