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________________ - जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९५ उसमें बहुत कबरस्थान २४ पोर, औलियापोर मादि हैं। कहांतक लिखिये । यह दृश्य बिना प्रत्यक्षके मानंद नहीं देसकता है। आगे दि. जैन गुफा हैं। यह रचना हजारों वर्ष पहिलेकी है । इस रचनासे ही श्वेताम्बरी झगड़े शांत हो सकते हैं । (३३०) एरोलाकी जैन गुफाएँ । पहिले एगेला ग्राममें, नहां कि टदग्नेका स्थान है, औचादिमे निवट र पूनाकी मामग्री लेकर एक जानकर आद को नाथ लेकर दि० नेन गुफाओं में जाना चाहिये । ग्रामो अ., दूर १ छोटामा पहाड़ है। ऊपर पाधनाथका पहाट नीचे ? गुफा हैं। उसमें सब जगह पहाड़को काटकर काम किया गया है। प्रारके मंदिरमें हाथी, घोड़ा, मिहामन, भामंटर, हाल, इन्द्र शादिकी रचना बड़ी मनोहर है । उ.परके मंदिर के दर्शन करके नीः गुफा ओंमें जाना चाहिये । नीचे कुल ३ पहाटोंमें , गुफा निममें २ गुका लम्बी चौड़ी बया २ दो मंन गो की है। अनेक पतिमा, म्धंभ व दीवालों में हैं। यह असूर्य र चना वना है। १ गुफ में मानम्थंभ है । बड़ा हाथो, २ मिंद भी हैं , ... भी आमपाम शिलालेग्व कनाड़ी भाषामें लिये हैं । यह नाबाद जानेको गम्ना है । उपमें भी अनेक प्राचीन रचनः मिलनी है । देवता हुआ दौलताबाद चला जाय । अगर दौलताबादसे आये हो तो पगेडाकी तरफ चला जाय । (३३१) दोलनावाद । यहांपर भी कुछ घर दि. जैनियों के हैं। एक प्राचीन मंदिर च प्रतिमा है । यहांसे ७ मील सहकका रास्ता सीधा औरंगाबाद
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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