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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४५ पहुंचना नहीं होता है। हम लोग दूरसे ही प्रभुका ध्यान कर पुण्यबंध कर सकते हैं। भरत महारानने बड़े र मंदिरोंमें भूत, भविष्यत वर्तमान, सम्बन्धी तीनों चौवीसी विराजमान की थी। कलिकाल में वहांका दर्शन नहीं होता है। वहांकी रक्षा देवों द्वारा होती रहती है। (२४.) बंगालके देश । इम प्रांतमें रेशम, अरंडी आदिका व्यापार बहुत होता है। यहां मांसभक्षी लोग बहुत रहने हैं। जीवोंकी हिंसाका कार्य बहुत होता है। दुमरी लाईन कलकत्तसे नाती है। बीचमें बहुन ग्राम है उनमें बहुतसे मारवाड़ी नैनी रहते हैं। मंदिर भी कहीरपर हैं। अब भासामका लेख पूर्ण करता हूं। कलकत्ते मे मागेका लिम्वता हूं। ____ कलकत्तमे बडगपुर जावे। टिकट १७) है। ईमर्गसे गोमोह, तथा आद्रा गाड़ी बदलकर बडगपुर नावे । (२४४ ) खडगपुर । ___ म्टेशनसे शहर पास है। पासमें १ वैष्णवों की धर्मशाला तथा मंदिर है। हीगलाल सरावगी आदि तीन घर दि. ननियोंके हैं। यहांपर रेलवेके नौकर अंग्रेज रहने हैं । शहर अच्छा है। सामान सब मिलता है । यहांसे १ लाईन सिवनी, नागपुर, कामठी मादि जाती है। ऊपर देखो । एक लाईन कटक, भुवनेश्वर होकर खुर्दारोड नाती है । १॥) देकर टिकट कटकका लेना चाहिये । (२४५) कटक । स्टेशनसे ।) सवारी देकर बैलगाड़ी ५ मील शहरमें जाना चाहिये । मानीवाभार दि. मेन धर्मशाला, मंदिर व कुमा। मंदिर ब चैत्यालयों में मूर्ति बहुत है। सबका दर्शन करना चाहिये।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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