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जैन नीर्थयात्रादर्शक । कोठियोंके थोड़ी दूर जंगल में चबूतरा है । नहांपर श्रीजीका रथ विराजमान होता है। वहांसे भी सब पहाड़का दर्शन पूना अच्छी तरह से कर सकते हैं । मधुवन में कुछ दिन ठहरकर २-३ वंदना करनी चाहिये । फिर १ भादमीको तथा १ दिनके खानेपीने का सामान साथ लेकर पर्वतकी परिक्रमा देवे । परिक्रमाके बीचमें १ भाग नालाव, २ गांव वगैरह पड़ते हैं । फिर अच्छी तरहमे दिल बोलका गरीब तथा टला, लंगड़ों को दान देना चाहिये। यहांपर कोट में बची बहुत रहता है । मो अपनी शक्तिके माफिक भंडार भगना चाहिये । फिर लौटकर गिरीली या ईमरी आनावे । घर जाना हो तो घर चला नावे । इसका हाल उ.पर लिख दिया है वहांसे देख लेना । ईपगमे या गिरीदीमे एक वार कलकत्ता अवश्य देखना चाहिये। फिर बडगपुर होकर घट गरि, उदयगिरि जाना चाहिये । दमका हाल नीचे रिग्वता हूं। जिम मनुष्यने मनुष्य जन्म पाकर तीर्थयात्रा नहीं की बह गुर्द के ममान है। और लक्ष्मी मिट्टीके बराबर है । कुटम्पी जन कीया के समान हैं । माधु पुरुष चाहे तीर्थ करें, या न करे वह नो म्वयं शुद्ध होनाता है, परन्तु गृहस्थों को तो नीर्थ अवश्य करना चाहिये।
घग्वारीने तीर्थ करना, माधुननने ध्यान । ये दोनों नहीं करें, ने हैं पशु ममान ॥१॥ काल करंना आन कर, आज करना अब्ध । छिनमें परलय होयगा, फेरि करेगा कव्य ॥२॥ आजकलको छोड़कर, करले जो कुछ अव्च । आग जरंता झोंपड़ा, सोया सो ही लब्ध ॥३॥