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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
शुहू भावोंसे वंदना करनेपर तिथंच और नरकगति नहीं होती है । और वह जीव ज्यादः से ज्यादः ५३ भवमें मोक्ष चला जाता है । जिस जीवको नरक तिथंचगति बंध गई होगी उसको दर्शन नहीं होगा | इसमें रावण और श्रेणिक दृष्टांत बताया जाता है । पहाड़ पर के एकेन्द्रियादि जीव भव्य हैं । एकर टोंक से १-१ तीर्थकर अनन्तानन्त मुनि मोक्षको पधारे हैं । इसी भरत क्षेत्र के २४ तीर्थंकर अयोध्या में जन्में और शिखरजी से मोक्ष जांय । परन्तु हुंडावर्षिणी कालके प्रभावसे अन्यर जगह जन्म व मोक्ष हुआ है । यह नियम अटल है । इत्यादि पर्वतका महात्म्य शिखर महात्म्यसे जानना । कुल पर्वतकी यात्राका चक्कर १८ मील पड़ता है। इस तीर्थराजकी महिमा अपरम्पार है | बालक से लेकर वृद्ध तक सभी वंदना करके पर्वतके नीचे आते हैं। और आनन्दसे खाने-पीते, डोलने-फिरने हैं । कुछ भी वेद वा परिश्रम मालूम नहीं पड़ता है । इस तीर्थ - राजको धन्य हैं, जहां देवलोक दुंदुभी बजाते हैं पानी वरसता है, मंद सुगंध हवा चलती है । सब वंदना करके पार्श्वनाथकी टोंक से आते समय इकदम उतारका रास्ता है । बीचमें प्राचीनकालका मकान है । उसमें बहुत कम यात्री आते जाते हैं । और इसी 1 पहाड़की धर्मशाला में रहते थे। यहांपर पालगंजके राजाका राज्य था । यहीं पर रहते थे । कुछ राजाको देकर यात्रा सफल बुलाया करते थे । फिर गंधर्व नालेपर आजाय । यहांपर विश्राम कर लेना चाहिये | अगर कुछ खाना-पीना हो तो कोठियोंकी तरफ से बंटता है वह लेकर खा - पीलेना चाहिये । बाल- बच्चों को भी कुछ खिला पिला कर नीचे कोठी में आजाय ।