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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१११. डोलीवालेको करके आनंदके साथ जय २ शब्द करता पर्वतकी वंदनाको चला जावे । ऐसा करनेसे कोई बातकी तकलीफ नहीं होगी। अगर निवटना हो तो गंधर्व नाले पर ही निकट लेना चाहिये।
(२२२) श्री सम्मेदशिखरजी पहाड़। फिर यहांसे १ मील सीता नाला पड़ता है। यहांपर द्रव्य धोकर प्रक्षालके लिये जल भी लेलेना चाहिये । यहांसे १ मीलतक मीदियां लगी हुई हैं । बाकी गम्ता कचा साफ सड़क सरीखा बना हुआ है । पहिले पहल श्री गौतम स्वामी और फिर कुंचनाथ भगवानकी टोंक पड़ती है । सो वहांपर कुछ दिन निकलनेके पहिले पहुंच जाना चाहिये । फिर पूर्व दिशाकी तरफ कुल १५ टीकोंकी वंदना करके फिर जल मंदिर मावे । कमसे नेमिनाथ, अरःनाथ, मल्लिनाथ, श्रेयांसनाथ, पुष्पदंत, पम नभु, मुनिमुवन और चंद्रप्रभ इन टोंकोंकी वंदना करना चाहिये। ये टोंके बदन उंची और दूर हैं । फिर वहांसे आदिनाथ, गोनलनाथ, अनन्तनाथ, मभवनाथ, वासुपूज्य, अभिनन्दननाथ इन टोंकोंकी वंदना करके जलमंदिरमें आनावे। यहांपर बड़ा भारी मंदिर और गेशकण पार्श्वनाथ आदिको सैकड़ों प्रतिमाएं हैं । पहिले यह दिगम्बर्ग था, पर श्वेताम्बरोंने झगड़ा करके ले लिया है । यहांपर कुछ विश्राम तथा बाधा मेटकर फिर पश्चिमको तरफ ८ टोंकोंकी वंदना करें । कुल टोंके २५ हैं। सबमें चरण हैं उन्हींकी वंदना भावसहिन करना चाहिये । पाचनाथ और चंद्रप्रभकी टोंकका चढ़ाव बहुत कठिन है। यहांपर अनंतानन्त कालसे मनन्तानन्त मुनि मोक्षको पधारे हैं। एक टोंक दर्शनका फल कोडाकोड़ी उपवासका फल लिखा है । एकवार ही