________________
नीर्थयात्रादर्शक जैन |
प्रतिमा हैं । २ मंदिर हैं । सब पूछ कर दर्शन फिर स्टेशन लौट आवे | (Ii) देकर टिकट खुरदारोड़ गाड़ी बदलकर पुरी जाना होता है । ( २४८ ) जगन्नाथपुरी ।
यह वैष्णवोंका बड़ा भारी तीर्थ है । इच्छामे ही यहांपर गाना चाहिये । जगदीशका मंदिर पहिले नेमनाथ का मंदिर था, परंतु अपनी मूलमे जगन्नाथका होगया है । यहां पर यात्री सत्र मतवाले हजारों आने रहते हैं । यह बड़ा भारी प्रसिद्ध तीर्थ है। स्टेशन मे २ मील दूर शहर है । एक ब्राह्मण पडाको साथ लेना चाहिये। उससे पहिले ठहराव कर लेना चाहिये " हम लोग नेन हैं, ज्याद कुछ नहीं देगें " इत्यादि । पट को साथ लेनेमे सच चीजें देखने में सुमीना रहता है | शहरमें २ टी धर्मशाला हैं । जहार पटा उनारे नहावर उतर जाना चाहिये | यहां अपना सामान जेवर वगैरह मावधानी से रखना चाहिये। मंदिर में भी सावधानी से जाना चाहिये | हजारों परदेशी यात्री व हर क्रिम्मके लोग मौजूद रहते हैं । भीड़ के मारे मदिरमें जाना-आना कठिन होता है। यहां पर जैनियोंका कुछ भी नहीं है । इसी मंदिरमें कृष्ण, बल्देव, रुकमणी, यशोदाकी ऐमी चार मूर्ति हैं, वे काटकी हैं । इस मंदिर के चारों तरफ तेतीस कोटि देवता बने हैं। एक गणेशजी की बहुत बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर भी इसीमें सामिल है । इसकी बनवाई तीन करोड़ हैं । सब देखना चाहिये। यहां 'जगदीशका भात, जगत पसारे हाथ' यह प्रसिद्धि है। भाव एक लोहे की कढ़ाई में बनता है।
-
[ १४७
करना चाहिये । पुरीका लेलेवे ।
मात्र देखनेकी
-