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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६५ मंडप तैयार करके बहुत दीपक-कर्पूर जलाकर आनंदसे दर्शन कराने हैं । कमती यात्री होनेपर कमती पेमा देनेसे मामूली दीपक जलाकर दर्शन कराने हैं । जो रुपया लिया जाता है वह २२ मंदिगेकी पूजा व जीर्णोद्धारमें लगाया जाता है । यहां और भंडार वगैरह कुछ नहीं लेने हैं । इमी मंदिरमें मिद्धांत शास्त्र श्रीधवल, महाघवल, नयधनक ताडपत्रोंपर लिन्वा हुआ है । उसका दान भी उमी समय कगते हैं। ये भी भंडारमें रहने हैं । फिर दृमरे मंनिलमें अनेक प्रकारकी रंग बिरंगी बहत प्रतिमा हैं। एक नंदी. श्वर कृट सहित चयालय है, तीमरे मंनिलमें म्फटिक मुंगादिकी प्रतिमा बहुत हैं। यहांपर भी दर्शन करना चाहिये । और मंदिरोंमें भी अनेक प्रकारको प्रतिमा दो २ मंनिलोंमें हैं। बहुत जगह एक दो प्रतिमा म्फटिकमणिकी रहती हैं । पुनारीमे पुछपाछ के दर्शन करना चाहिये । यहांपर १ बोडिंग भी है। वहांपर १ चैत्यालय है । भट्टारकनीके मठमें म्फटिकमणिकी प्रतिमा है। म्यागे यह मूलबद्री शहर समुद्र के बीचमें दीपपर था। यहांपर हनागें घर नहरी लोगोंके थे। वे लोग समुद्र से हीपांतरमें व्यापारको नाने थे । मो कोई भाग्यवान् प्रतिमा लेकर माने थे । सो यहांपर विराजमान हैं। यही मंदिर भी उन्हीं लोगोंने बनवाया था। आम इन प्रतिमाओंकी कोई कीमत भी नहीं दे सकता है। कलकत्ता, बम्बई, इन्दौर, देहलीके सेठ भी ऐसे मंदिर बनवानेको असमर्थ हैं । उन महानुभावोंको कोटिशः धन्यबाद है, जिन्होंने ऐसा कार्य करके अपनी चंचल लक्ष्मी, तथा मन्म सफल किया। मंदिरोंके लिये सेठ लोग
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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