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१६४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । यहां पर हैं । यज्ञोपवीत, मुनिदान, स्त्री पूना भी आगमानुसार कर सकता है, बड़े२ आचार्य इस देशमें हुए हैं । इमीसे धर्मपरायणता यहां पर चली आती है, बड़ी कीमती अपूर्व प्रतिमाए यहांपर हैं। इस प्रकार गृलबद्री तीर्थरानके दोनों रास्तों का उल्लेख किया। अपनी इच्छानुमार राम्तेमे आ नामकने हैं ।
( २७५ / श्री मृलबद्री (मृडविद्री) तीर्थराज ।
यह शहर अच्छा है, ४ धर्मशाला और भट्टारकनीका मठ है। कुल २२ मंदा हैं, उनमें ३ मंदिरों का हाल---
१-श्री चन्द्रप्रभुम्वामी का बड़ा भारी करोड़ों की लागतका, मंदिर है, चारों तरफ दो कोट, मानस्तम्भ, र हस्ती और स्व
की प्रतिमा चन्द्रप्रभु स्वामीकी है। उपरके मंजलमें सहस्रकूट चैत्यालय, व साधारण चैत्यालय है. तीसरे मंजिल में हरी, पीली, लाल, श्वेत नाना तरहकी प्रतिमा हैं, घातुकी भी बहुत प्रतिमा हैं। स्फटिकमणिकी अन्दाजा ५० प्रतिमा हैं। पुनारीको कुछ देकर मानन्दसे दर्शन करना चाहिये।
दुसरा सिद्धांत मंदिर है। यह भी बहुत मजबूत और विशाल मंदिर है । यह मंदिर भी करोड़ोंकी लागतका है। नीचेके मंदिर श्री पार्श्वनाथस्वामीकी ११ हाथ ऊँची बड़ी प्रतिमा है। और भी प्रतिमा हैं । नीचे भंडारमें हीरा, पन्ना, मुंगा, मोती, गरुड़मणि, पुष्पराग, बैडूर्य, चांदी, सोनाकी ३५ प्रतिमाएं हैं। भंडारकी चावी ३ हैं। १ भट्टारकनीके पास व दो मुखिया पंचोंके घरपर रहती हैं । जब बात्री आते हैं सब तीनों चावीवाले इकट्ठे होकर और कुछ रूपया लेकर बहुत मात्रियोंके संघटन के समय