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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९५ नीचे डाल दिया । और मंदिग्में देवीको विराजमान करदी । जिन प्रतिमाको भैरव आदि बोल कर उनके ऊपर देल मिदुर चढ़ाने हैं । और सामने हजारों जीवों का वध करते हैं। प्रतिमाएर ग्यून और मांस पिंडका देर कर देते हैं । बहुनसे लोग नारियल, फल, फूल, मिठाई आदि भी चढ़ाते हैं। पहाड़की दुर्दशा और मोह निद्रा दिगंवरियों की देग कर कलकत्ता निवामीबाव बद्रीदामनी जौहरी वेताम्बर -नने अपना बहुतमा धन खर्च करके इस पहाड़को ग्राम सहित खरीद लिया है । और अपने आधीन कर लिया है व कनी - शाला बनवाकर एक अपना आदमी रग्ब दिया है । पहाइपर जीववघ न हो, इसलिये बाबमा ने बहुत मुकदमा लडा, परन्तु बगाली लोगोने जीव मारना बंद नहीं किया। मगर पहिलेसे कुछ कम नीव मरते हैं। यह सब कलिकाल की माया है। पहाड़की चढ़ाई आध मीलकी मरल है । पहिले वही मदिर, प्रतिमा और सहनकट चत्यालयका बटर मिलता है निमका उल्नेम्व उपर किया नाचुका है । फिर पहा, जर थोड़ी दा जानेगे एक पत्थर के नीचे बड़ी भारी गुफा है । इसमें अखण्डित २ प्रतिमा विगनमान हैं। एक बडा भारी वृतग मंडप आता है। यहांपर पहिले बड़ा मंदिर और धर्मशाला थी, मो टूट गई ऐमा माटम होता है । फिर आगे जानेमे एक पहाटके पत्थरमें १० प्रतिमा अग्बंटित लेकर वरनाथ नगई है । और आगपाममें छोटी२ प्रतिमा हैं। वृषभनाथमे एक पत्या शिलालेग्न भी है। पर पढ़ने में नहीं आता है। गीतलनाथके तप कल्याणकका यह स्थान है। यहींपर भगवानको केवलज्ञान हुआ था। यहांसे थोड़ी दूरपर १ भद्रलग्राम है । उसमें
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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