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१२६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । भी एक प्राचीन शीतलनाथका मंदिर है। इसलिये इसीका नाम सच्चा भद्रलापुरी है । जहाँपर कि भगवान के गर्भ, जन्म, कल्याणक हुए थे, यह वही तीर्थ और वही नगरी है । यह दुष्ट कलिकालका प्रभाव है । यहांकी हजारों वर्षों से मुनि, आर्यिका, धर्मात्मा लोग वंदना करते भाये, उसीकी आज यह दशा है ! उपरकी दश प्रतिमाओंको बंगाली लोग दशावतार मानते हैं। यहांकी वंदनाके लिये हम (व० गेवीलाल) और गयाके बहुतसे लोग आये थे । बड़े आनंद के साथ पूना वंदना की थी। गयावालोंसे बहुत कहा कि आप लोग यात्रियों को आनेनाने का प्रबंध करदो। जानेके लिये प्रेरणा किया करो । परन्तु किसीने भी ध्यान नहीं दिया । यात्री सिर्फ प्रसिद्ध नामी२ तीर्थोपर ही जाते हैं। यहांपर नहीं आने हैं। यह बहुत ही रमणीक पुण्यक्षेत्र है । रेल वगैरह पासमें है । दौड़कर भी चले जासकते हैं। हमने ऐसे २ गुप्त स्थानों के दर्शन बड़े कष्टसे करके इस पुस्तक लिखने का साहस किया है । यहांकी यात्रा करके लौट कर गयानी आवे । अब गयानीसे पीछे नवादा, भागलपुर, मधुपुर, गिरीडो होकर शिखरमी जासकते हैं । गयासे सीधे हजारीबाग-ईसरी होकर शिखरनी जासकते हैं । बीचमें कोडरमा, हजारीबाग रोड़ पडता है । वहांपर दि. जैन मंदिर और जैनियोंके घर बहुत हैं। फिर ईसरी स्टेशन उतर पडे । गयासे टिकट १॥) ब्गता है।
(११५) ईसरी। स्टेशन के पास २ दि. जैन धर्मशाला हैं। एक मंदिर और कुआ भी है । यहांसे मोटर-बैलगाड़ी या पैदल ही १४ मीठ