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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | [ १११ स्टेशन मे १ मील ग्राम है। वैष्णवोंकी धर्मशाला है । यहांपर १ छत्री, २ तालाव, १ ब ग, राजमइल देखने योग्य है | यहांसे तांगामाड़ा करके गांव से पश्चिमकी तरफ १० मीलपर सेटमेट क्षेत्र जाना चाहिये । ( १९५ ) श्री सेटमेटक्षेत्र । सडककी उनकी तरफ नंगल है। जंगलके आगे १ छोटासा ग्राम हैं। कुमा भी है। यहां एक बौद्धों का आदमी नौकर रहता है। बौद्धोंके साधु भी रहते हैं । उनके मकान भी हैं। यहां पर जाना चाहिये | फिर यहां मोल जंगलमें एक आदमीको साथ लेकर सौमनाथ के मंदिर जाना चाहिये । यहावर पहिले कच्चा मंदिर था । उसमें प्राचीन प्रतिमा थी, मो लखनऊ लायब्रेरी में लेगये ! अब कुछ नहीं है | मंदिर गिर गया है । अब भी कोनों तक मकानो खण्डहर हे जन-बौद्ध दोनों इस क्षेत्रको मानते हैं । मगर "जैनियों की दशा देखकर बड़ा दुख होता है। ऐसा पवित्र क्षेत्र इन जैनियोंने छोड़ दिया । यहावर प्रतिवर्ष केवल जैन २-४ ही आते होंगे ! पर बौद्धो र यहाका कर रखा है। नैनियों का नाम निशान भी नहीं यह वही नगरी है जहांवर संभवनाथ के गर्भजन्म, तब ये तो ल्याणक हुए थे। उनका नाम श्रावती नगरी है। अभी सेटमेट नाम से प्रसिद्ध है । यहापर मौद्ध आकर रहते हैं । ब्रह्मकी धर्मशाला पूछ लेना चाहिये | यहां पर ग्रामके थोड़ी दूर बौद्ध लोगोंके खंडहर, कुंड, चबूतरा, और चरण पादुका हैं। सो आने-जाने समय देख लेना चाहिये । इस महान पुगेका दर्शन करके जन्म पवित्र कर लेना
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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