________________
५६ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
1
हैं । लवणांकुशादि साढ़े पांच करोड़ मुनि मुक्तिको गये हैं । एक कूआ व तालाव है । पहिले पहाड़ पर हजारों दि० मन्दिर थे । आज वही सब खंडहर हैं। मंदिर के पत्थरोंमें हजारों जैन मूर्तियां खुदी हुई हैं ! यहांके पत्थरोंसे पहाड़पर एक अंबिका देवीका मंदिर बना हुआ है । ऊपर बहुत बड़ी यात्रा है । हजारों अर्जेनी देवीको भेंट पूजा लेकर जाते हैं । जैनियोंकी कोशिश से यहां देवीको नारियल, केशर, फूल, मिठाई, चूरमाका लड्डू, चढ़ता है । परन्तु जीवघात नहीं होता है । यहांकी वंदना करके लौट आना चाहिये। यात्रियों को चांपानेर स्टेशन जाना चाहिये। अगर यात्रियों को आगे जाना हो तो गोधरा, दाहोद होता हुआ रतलाम जावे । और पीछे जाना हो तो लौटकर बड़ोदरा जावे । बीचमें रतलाम लाइनमें १ डाकौरजीनाथ बैष्णव भाईयोंका तीर्थ भी है।
(९१) गौधरा ।
स्टेशन के नजदीक अच्छा शहर है । मुसलमानोंकी वस्ती अच्छी है । श्वेताम्बरोंके घर और वस्ती भी टीक है । दि० कुछ नहीं है ।
( ९२ ) डाकौरजी |
यह वैष्णवोंका तीर्थ है । आणंद गोधरा के बीचमें डाकौर स्टेशन पड़ता है । गोवरासे ||) और आनंदसे । - ) का टिकट है । स्टेशनपर तांगावालोंको ठहराके ग्राम में चला जाय, प्रत्येक सवारीका =) लेते हैं। ग्राम अच्छा है, सामान सब मिलता है। यहां वैष्णव धर्मशाला तथा बहुत लोगोंकी धर्मशाळा हैं। डाकौरमी मंदिर