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जैन तीर्षयात्रादर्शक। [५७ सोनेका किवाड़ कलशा सहित है, और थंभ चांदीके हैं । डाकौर. जीकी मूर्ति बहुत बढ़िया है । ४ तालाव हैं, हमेशा यात्री माते रहते हैं। लौटकर बड़ोदरा आवें फिर यहांसे अंकलेश्वर भावे । टिकट १ है, किसीको अहमदावाद जाना हो तो चला जाय ।
(१३) अंकलेश्वर । म्टेशन १ मील दूरीपर दि० धर्मशालामें उतरे । ४ मन्दिर और बहुत प्रतिमा हैं । भौंहरामें एक प्राचीन अतिशयवान् प्रतिमा श्री पार्श्वनाथकी चिंतामणीके नामसे जगत्प्रसिद्ध है, सबका दर्शन करके लौट आवे । इसी अकरेश्वरमें पुष्पदंत भुनवली आचार्य महारान गिरनारके वनमेंमे जयधवल महाधवल शास्त्र ताइपत्रोंपर वृक्षके रमकी म्याही र लिवकर यहांपर पधारे थे । सो जेष्ठ सुदी ५को श्रृंतपंचमीका उत्सव करके शास्त्रनी यहांपर विराजमान कर गये थे । वही मिहान शास्त्रनी यहांपर बहुत काल विराजमान रहे। फिर यहांसे मोलापुर, कोल्हापुर होते ..ए. वही शास्त्र मूलबद्री पहुंच गये हैं। आज वहींपर विराजमान हैं । यह अंकलेश्वर जैनियों का प्राचीन स्थान है। यहां पर श्वेतांवर घर और मंदिर भी हैं। यहांसे लौटकर मुरत उतरे, टिकट ।) है।
(९४) मुरत जंकशन । स्टेशन के पास तासवाला सेठकी छोटी दि. धर्मशाला व चैत्यालय है। यहींपर उतरें । एक दुसरी धर्मशाला १ मोलकी दुरीपर चन्दावाड़ी भी है, ॥ सवारी तांगावाला लेता है। यहाँपर सब बातका माराम है । पासमें सेठ मूलचन्द किसनदासनी कापड़िया रहते हैं। उन्हीं मेनविनय प्रेस है