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________________ ९६ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक | बड़ा घाट और बहुत मंदिर महादेवनीका है । यहांपर अन्यमती कोग मुर्दोंकी राख हाड़ लेकर जमना नदीमें फेंकने आते हैं, श्राद्ध भी करते हैं । पिंडदान भी देते हैं। मेला भी भरता है। हजारों लोग आते जाते हैं । गांव अच्छा है । ब्राह्मणके बहुत घर हैं । 1 इन्हीं लोगों का जोर बहुत है। ग्राम में बड़े२ मजबूत गढ़ और मकान हैं। एक धर्मशाला और १ दि० मंदिर है । यहांपर एक भट्टारकजी रहते थे, सो ब्राह्मग लोगोंको चतुराई दिखाकर वादविवाद में जीतकर जमनाजी में शीसा तांब डालकर जमनाजीके पार जैन मंदिर बनाया गया | श्री नेमनाथ स्वामीकी पद्मासन श्यामवर्ण बड़ी विशाल प्रतिमा है । फिर यहांने १ मील जंगल में सौरीपुर जाना चाहिये | ( १६३ ) शोरीपुर | " यहां नेमिनाथ भगवानका गर्भ जन्म कल्याणक हुआ था । किसी शास्त्रमें द्वारका में हुआ था भी लिखते हैं । मो इसका निर्णय केवलज्ञानी करेगा | हमको दोनों जगह पूज्य मानना चाहिये । यह शहर पहिले १२ योजन बम्बा ९ योजन चौड़ा था । कालके प्रभावसे आज जंगल है यहांपर दिगम्बर श्वेतांबर दोनोंके मंदिर चबूतरा चरणपादुका हैं । सो पुण्य क्षेत्रकी वंदना करके वटेश्वर फिर लौटकर शिकोहाबाद लौट आना चाहिये । फिर यहांसे टिकट १) देकर फरुखाबाद जावे | यहांसे १ रेल इंटला जाती है । १ फरुखाबाद, १ दिल्ली जाती है। अगर किसीको देखना हो तो फरुखाबाद चला जाय । नहीं तो वहांसे टिकटका (2) देकर काममगंज जाना चाहिये |
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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