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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | [ ९१ फिर लौटकर झांसी आवे यह ठीक नहीं है । झांसीसे सोनागिर वगैरह करके फिर लौटती वार उन तीर्थोंको करना चाहिये । ( १५५ ) सिद्धक्षेत्र सोनागिरजी । स्टेशन के पास ही एक दि०जैन वर्मशाला है । यहीं पर ठहरे । सोनागिर जाने से यहां पर सामान भी रख सकते हैं । जिम्मेवार माली रहता है । कुछ घर भी हैं । यहांसे ) सवारीमें ३ मील सोनागिरजी जाना चाहिये | ग्राम छोटासा है । यहांपर बहुत धर्मशाला, कुआ, जंगल, बाजार सब कुछ हैं। एक भट्टारकजी महाराजका यहां स्थान है। नीचे कुल तेरा, वीसपन्थी मिलाकर २२ मंदिर हैं । उनमें से एक मंदिर लश्करवालोंका बहुत ऊंचा, बहुत चक्कर में मोटा है। और भी अच्छे मंदिर हैं। पहाड़ जमीन बराबर ही नजदीक है । पहाटपर २ मीलके चक्कर में ५४ मंदिर कीमती मनोहर हैं। जिनमें हजारों प्राचीनकालकी प्रतिमा हैं | यहांके मूलनायक चन्द्रप्रभु स्वामीका बहुत बड़ा मंदिर है । यहां अनंकुमारादि साढ़े पांच कोड मुनि मोक्षको गये हैं | वंदना करके स्टेशनपर आजावे । टिकट |||) देकर ग्वालियर जंकशन उत्तर पड़े। ( १५६ ) ग्वालियर | स्टेशन से २ मील दूरीपर करकर चम्पाबागकी धर्मशाला में उतरे, 1) सवारी लगता है । यहांपर ठहरनेसे सब बात का सुभीता रहता है । फिर किसी एक आदमीको साथ लेकर लश्कर जावे । ( १५७ ) लश्कर | यहां पर कुल २२ मंदिर हैं। उनकी वंदना करे। फिर बाजारकी सैर करना चाहिये । कुछ लेना-देना हो लेना-देना चाहिये ।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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