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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४१ हैं। २ दिन वीरगंजमें रहकर नेपालसे हुकुम मंगाना चाहिये । खुद राजा सा के हाथ मुहर रहती है। टिकट देना पड़ता है। विना हुकुम कोई परदेशी आदमी नेपाल के भीतर नहीं नासकता है! मगर मेलेपर आम समानको आज्ञा है। यहांसे २८ मील नेपाल है। २० मीलतक बैलगाड़ी जासकती है। आगे ८ मीलका विकट राम्ता है। पांव, घोड़ा या बैलमे जाना होता है । बीचमें ३ मील अत्यन्त मकग चढ़ावका गम्ता है। यहाँके नेपाली मजुर लोग असमर्थ लोगोंको २) लेकर : टोकरीमें बिठाकर पहाड़ उतार देते हैं । बड़ा विकट स्थान नेपाल है।
(२४० ) नेपाल शहर । शहरके चारों तरफ पहाडका गढ़ बागया है। फिर गढ़, दरवाजा, वापिका, तालाव, उपवनादि हैं। नगर गजा मा०का अत्यन्त सुन्दर माटम होता है । यहांपर एक पशुपति ( पार्श्वनाथ या महादेव का बड़ा भारी मंदिर है । उम मूर्तिमें फण हैं इमलिये साक्षात पाश्वनाथकी मन्टम होती है। उसके शरीरका पता नहीं है । केवल फण महिन मानक है । इम शरीरका नाम लोगोंने पशुपति ग्व लिया है । यह मूर्ति पाच पाषाणकी है । इमीके लिये लोग ह नागेकी मंग्याम शिवरात्रिपर इकट्ठे होते है । इस मंदिरका दरवाना ग्बु गना साहिब आकर खोलने हैं । तभी सब लोग दर्शन करते हैं। लोहे की सुई लगानेसे सोने की होनाती है ! यह नेपालके राना चंद्रगुप्त-भद्रबाहु के समयमें जैन थे। उसी समयका यह मंदिर है । इमसे इसी मूर्ति के लिये राना सा० पूरा बंदोबस्त रखते हैं। मान इसकी ऐसी दशा है कि एक-दो रानिये