________________
जैन तीर्थयात्रादर्शक । दरवाना जोकि पूर्व तरफ है, वहांपर घाट बंधा हुआ है । एक तालाव और मंगल है। यहां कोटके बीच करोंड़ो रुपयोंकी लागतके बड़े २, ४५ मंदिर बने हुए हैं। एक बड़ा कीमती मानस्तंभ है। एक मंदिरमें १ सहस्रकृट चैत्यालय है। १०-१५ हाथ तथा ७-८ हाथकी उंची खडगासन प्रतिमा बहुत हैं। और कुल प्रतिमा अनुमानमे ५ हजार प्राचीनकालकी बनी हुई मनोहर हैं । यहां एक मंदिर बहुत बड़ा है । यहांपर शिलालेग्व बहुत हैं । पहिले यहाँपर मुनि, आच र्य, आर्यिका, ऐलक, क्षुक, ब्रह्मचारी बहुत काल तक पान करते रहे थे, ऐमा शिलालेख मे मालूम हुआ है। और ये मदिर भी विक्रम संवत् पांचमे लेकर बारह तकके बने
यहांके विषयमें ऐमो किवदंती है कि दो भाइयोंने जोकि अपनी गरीबो हालतमें मेटके माथ ममेदशिवानीकी वंदनाको गये थे । सो अपनी गरीबी पर पश्चाताप करने हुए चुपचाप मंघके पहले पहाड पर बंदनाको गये । और महान कमणाननक भावोंमे ज्वारके दाने टोंक २ पा चढ़ाकर वंदना की । वो ही दाने गजमोती हो गये ! उनही दोनों महात्मा भाईयोंके पुण्योदय आया । सम्पत्तिके स्वामी होकर इस पहाड़के जिनालय निर्माण कराये । यहां पर कितना धन खर्च किया होगा, कैमे काम कराया होगा, एकवारके दर्शनोंमे मालूम होजायगा। ज्यादः कहांतक लिखा जाय । यह स्थान अत्यन्त जीर्ण अवस्थामें पड़ा है। अगर कोई धर्मात्मा पुरुष जीर्णोद्धार करादें तो उसको और उसकी लक्ष्मीको धन्यवाद है । जीर्णोद्वारके समान कोई पुण्य नहीं है । यहांकी यात्रा करते