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युगवीर-निवन्वावली.
है, आर्यखंडमे आर्य और म्लेच्छ दोनो प्रकारके मनुष्य निवास करते हैं । जिस प्रकार आर्यखंडमे आर्यदेश हैं उसी प्रकार कुछ म्लेच्छदेश भी हैं और कुछ मिश्रदेश ऐसे हैं जिनमे आर्य और म्लेच्छ दोनो निवास करते हैं। शास्त्रोमे ग्लेच्छोके मुख्य तीन भेद वर्णन किये हैं ---(१) आर्यखडोद्भव, (२) म्लेच्छखडोद्भव और (३) अन्तरद्वीपज । आर्यखडोद्भव (आर्यखडमे उत्पन्न होनेवाले ) म्लेच्छोके भेद शक, यवन, शवर, पुलिन्दादिक हैं। जैसा कि स्वामी समतचद्राचार्यके निम्नलिखित वाक्यसे प्रगट है .--
"आर्यखडोद्भवा आर्या म्लेच्छाः केचिच्छकादयः । म्लेच्छखडोद्भवा म्लेच्छा अन्तरद्वीपजा अपि ।। २१२ ।।"
( तत्त्वार्थसार) आर्यखडके जिन देशोमे प्राय आर्यखडोद्भव म्लेच्छ निवास करते हैं उन देशोको म्लेच्छ देश कहते हैं। म्लेच्छ देशोका सद्भाव आर्यखंडमे पहलेही से चला आता है। भगवज्जिनसेनाचार्य-प्रणीत आदिपुराणके देखनेसे मालूम होता है कि जिस समय चतुर्थ कालके आदिमे कोशल आदि महादेशोकी स्थापना हुई थी उसी समय कुछ म्लेच्छ देश भी स्वतत्र रूपसे स्थापित किये गये थे। इस ग्रन्थके १६ वे पर्वमे उन कोशलादि देशोका नामादिक देकर उनके अन्तराल देशोका वर्णन इस प्रकार किया है .
"तदन्तरालदेशाश्व बभूवुरनुरक्षिताः। लुब्धकारण्यक-चरक-पुलिन्द-शवरादिभिः ।। १६१ ।।
ॐ इन दोनोंका एक नाम 'कर्मभूमिज' भी है।