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२२] . योमसार टीका। मोक्षमार्ग हैं कि नहीं है ऐसा विकल्प करके किसी एक पक्षको नहीं ग्रहण करना संशय मिथ्यादान है।
"सर्वदेवताना सर्वसमयानां च समदर्शनं वनायकम्सर्व ही देवताओंको व सर्व ही दर्शनोंको या आगमोंको (विना स्वरूप विचार लिये ) एक समान श्रद्धान करना वनयिक मिथ्यादर्शन है।
हिताहितपरीक्षाविरहोजानिकत्वं हित अहितकी परीक्षा. नहीं करना, देखादेखी धर्मको मान लेना, अज्ञान मियादर्शन है। सम्यग्दर्शन वास्तवमें अपने शुद्धात्माके स्वरूपकी प्रतीति है, उसका न होना ही मिथ्यादर्शन है । जीव. अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा मोक्ष इन सात तत्त्वों में श्रद्धान न होना तथा वीतराग सर्वज्ञ देवमें, सत्याध आगममें च सत्य गुरुमें अद्भानका न होना व्यवहार मियादर्शन है। यह सब गृहीत या अधिगमज या परोपदेश पूर्वक मिल्यादान है।
अपनेको औरका और शारीर रूप मानना अगृहीत या नैसर्गिक मिन्यादर्शन है | भिण्यादर्शनके कारण इस जीवको सच आत्मीक मुरत्रकी तथा सजे शुद्ध आत्माके स्वभावकी प्रतीति नहीं होती है । इसकी बुद्धि मोहसे अच्छी होती है । यह विषयभोग सुखको ही सुख समझकर प्रतिदिन उसके उद्योगमें लगा रहता है । परपीड़ा पहुंचाकर भी स्वार्थ साधन करता है, पापोंको बांधता है, भवभवमें दुःख उठाता फिरता है । मिथ्यादर्शनके समान जीवका कोई वेरी नहीं है । मिथ्यानसे बढ़कर कोई पाप नहीं है। देहको अपना मानना ही दह धारण करनेका चीज है। समाधिशतफमें श्री पृज्यपादस्वामीने कहा है
न तदस्तीन्द्रियार्थेगु यत् क्षेमकरमात्मनः । तथापि रमते बालस्तत्रैवाज्ञानभावनात् ॥ ५५ ॥