________________ (स्थितिक्रम) कही जाती है। उदाहरणार्थ- आवश्यक सूत्र का सामायिक अध्ययन पूर्वानुपूर्वी से समस्त छः / अध्ययनों में, प्रथम है, किन्तु पश्चानुपूर्वी से छठा है। नाम-उपक्रम के अन्तर्गत अध्ययन का विषय किस (जीव-) भाव से सम्बद्ध है' -यह बताया जाता है। उदाहरणार्थ- सामायिक अध्ययन क्षायोपशमिक भाव से सम्बद्ध है। प्रमाण-उपक्रम के अन्तर्गत यह बताया जाता है कि विषयवस्तु द्रव्य, गुण, कर्म- इनमें से क्या है ? गुण है तो जीव का है या अजीव का, जीव का है तो ज्ञान-दर्शन-चारित्र -इनमें से कौन-सा है, आदि-आदि। 'वक्तव्यता' उपक्रम में यह स्पष्ट किया जाता है कि स्वसमय (स्व-सिद्धान्त), परसमय, उभयसमय -इनमें से कौन-सा वक्तव्य है। अर्थाधिकार में यह बताया जाता है कि इसका विशेष प्रतिपाद्य क्या है। स्वसमय या . परसमय है तो कौन-सा विषयविशेषार्थ है, उहारणार्थ- सामयिका अध्ययन स्वसमय है, तो उसका प्रतिपाद्य विशेषार्थ है- सावद्ययोगविरति- इसका स्पष्टीकरण अर्थाधिकार में किया जाता है। इन सब विधियों से अन्त में, उपक्रम का उपसंहार करना- 'समवतार' है। अनुयोग का दूसरा भेद है- निक्षेप। 'नि' का अर्थ है- नियत, निश्चित। 'क्षेप' का अर्थ है- न्यास या व्यवस्थापन। अर्थात् निक्षेप-पद्धति से प्रतिपाद्य विषयवस्तु को नाम, .. स्थापना, द्रव्य व भाव -इन चारों में व्यवस्थापित किया जाता है। निक्षेप के तीन अन्य प्रकार भी हैंओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न, तथा सूत्रालापकनिष्पन्न / ओघ में सामान्यतः शास्त्र-नाम (जैसे-अध्ययन, अक्षीण, आय, क्षपणा आदि शास्त्र-नाम सामान्य रूप से हैं,उनका) निरूपण निक्षेप-पद्धति से किया जाता है। नामनिष्पन्न निक्षेप में विशेष नामों (जैसे- सामायिक) का निक्षेपों से निरूपण होता है। सूत्रालापक निक्षेप में सूत्रोच्चारण के बाद, उसके समस्त पदों का निक्षेप-विधि से व्याख्यान किया जाता है। इस प्रकार निक्षेपविधि से शास्त्र की सुखबोध्यता निष्पन्न होती है। 21. परिपाटी-आनुपूर्वी उच्यते।सा च त्रिविधा वक्ष्यते-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी, अनानुपूर्वी चेति। (बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गा. 917-921) / 22. तथा पूर्वानुपूर्वी-आदिना चिन्त्यमानमिदमध्ययनं कतिथम्? इति प्रष्टव्यम्। तत्र पूर्वानुपूर्व्या प्रथमम्, पश्चानुपूर्व्या षष्ठम्, अनानुपूर्व्या पुनः सातिरेकसप्तभङ्गकशतविषयत्वात् अनियतम् (बृहवृत्ति, वि. भा. गाथा- 917-921) / 23. द्र. बृहवृत्ति, वि. भाष्य, गाथा- 917-921. 24. निक्खिप्पइ तेण तहिं, तओ व निक्खेवणं व निक्खेवो। नियओ व निच्छिओ वा खेवो नासो त्ति जं भणियं (वि. भाष्य, गाथा-912)। निशब्दक्षेपशब्दयोरर्थमाह-नियतो निश्चितो वा क्षेपः शास्त्रादेः नामादिन्यासः इति निक्षेपः (बृहवृत्ति, भा. गा.-912)। 25. द्र. वि. भाष्य गाथा- 957 एवं 2, तथा बृहवृत्ति। 26. द्र. वि. भाष्य, गाथा- 958-967 एवं बृहद्वृत्ति। 27. द्र. वि. भाष्य, गाथा-968-969 एवं बृहद्वृत्ति। 28. नामादिनिक्षेपानुसारतः शास्त्रम्, अध्ययनम्, उद्देशको वा सुखेनैव भण्यते, अभिधीयते, सुखेनैव गृह्यते, अधिगम्यते, तस्मात् शास्त्रादेः सम्बन्धी ओघः, नाम, सूत्रं च अवश्यमेव निक्षेप्तव्यम् (बृहद्वृत्ति, वि. भाष्य गाथा-957)। RB0BR(r)(r)(r)(r)R(r)(r)R [40] R@Recr(r)(r) CR(r)(r)R(r)(r)ce