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प्रथम अध्ययन - जन्मान्ध परुष का वर्णन
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रहस्सियंसि भूमिघरंसि रहस्सिएणं भत्तेपाणेणं पडिजागरमाणी पडिजागरमाणी विहरइ॥१०॥ ___कठिन शब्दार्थ - अत्तए - आत्मज, मियापुत्ते - मृगापुत्र, दारए - बालक, जाइअंधेजाति अन्ध-जन्म से अंधा, जाइए - जन्म से मूक-गूंगा, जाइबहिरे - जन्म से बहरा, जाइपंगुले- जन्म से पंगुल-लूला लंगडा, हुण्डे - हुण्ड, पायवे - वात (वायु) प्रधान, वात व्याधि से पीड़ित, हत्था - हाथ, पाया - पांव, कण्णा - कान, अच्छी - आंखे, णासा - नाक, अंगोवंगाणं - अंगोपांगों की, आगिई - आकृति, आगिइमित्ते - आकार मात्र थी, रहस्सियंसि - गुप्त, भूमिघरंसि- भूमिगृह (मकान के नीचे के तलघर-भौंयरे) में, रहस्सिएणंगुप्त रूप से, भत्तपाणएणं- आहार पानी से, पडिजागरमाणी - सेवा करती हुई।
भावार्थ - उस विजय क्षत्रिय का पुत्र और मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नाम का एक बालक था। जो कि जन्मकाल से ही अन्धा, गूंगा, बहरा, पंगु, हुण्ड और वातरोगी था। उसके हाथ, पांव, कान, आंखें और नाक भी नहीं थी। केवल इन अंगोपांगों का आकार मात्र था और वह आकार चिह्न भी उचित स्वरूप वाला नहीं था। तदनन्तर वह मृगादेवी गुप्त भूमिगृह में गुप्त रूप से आहार पानी आदि के द्वारा उस मृगापुत्र बालक की सेवा करती हुई जीवन व्यतीत कर . रही थी।
जन्मान्ध पुरुष का वर्णनं तत्थ णं मियग्गामे णयरे एगे जाइअंधे पुरिसे परिवसइ, से णं एगेणं सचक्खएणं पुरिसेणं पुरओ दंडएणं पगडिजमाणे पगड्डिजमाणे फुट्टहडाहडसीसे मच्छिया-चडगर-पहकरेणं अण्णिजमाणमग्गे मियग्गामे णयरे गेहे गेहे कालुणवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ॥११॥
कठिन शब्दार्थ - सचक्खुएणं - चक्षु वाले, पुरओ - आगे, दंडएणं - दण्ड के द्वारा, पगहिज्जमाणे - ले जाया जाता हुआ, फुटहडाहडसीसे - मस्तक के बाल अत्यंत अस्तव्यस्तबिखरे हुए, मच्छिया-चडगर-पहकरेणं - मक्षिकाओं (मक्खियों) के विस्तृत समूह से, अण्णिज्जमाणमग्गे - जिसका मार्ग अनुगत हो रहा था, कालुणवडियाए - कारुण्य-दैन्य वृत्ति से, वित्तिं - आजीविका।
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