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प्रथम अध्ययन - जंबू स्वामी की पृच्छा और सुधर्मा स्वामी का उत्तर .......................0000000000000000................... समुदाय का नाम श्रुतस्कंध है। दो श्रुतस्कंधों में पहले का नाम दुःखविपाक है और दूसरे का नाम सुखविपाक है। जिसमें अशुभकर्मों के दुःखरूप विपाक-परिणाम विशेष का दृष्टान्त पूर्वक वर्णन हो, उसे दुःखविपाक और जिसमें शुभकर्मों के सुखरूप फल विशेष का दृष्टान्त पूर्वक प्रतिपादन हो, उसे सुखविपाक कहते हैं। _ 'दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कंध के कितने अध्ययन हैं?'
जंबू स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में सुधर्मास्वामी ने दश अध्ययनों के नाम इस प्रकार फरमाये हैं - १. मृगापुत्र २. उज्झितक ३. अभग्नसेन ४. शकट ५. वृहस्पति ६. नंदीवर्धन ७. उम्बरदत्त ८. शौरिकदत्त ६. देवदत्ता और १०: अजू। ___ प्रस्तुत श्रुतस्कंध में मृगापुत्र आदि के नामों पर ही अध्ययनों का नाम निर्देश किया गया है क्योंकि दश अध्ययनों में क्रमशः इन्हीं दशों के जीवन वृत्तान्त की प्रधानता है।
... जइ णं भंते! समणेणं० आइगरेणं तित्थगरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा-मियापुत्ते य जाव अंजू य, पढमस्स णं भंते!
अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते?॥८॥ ___ भावार्थ - हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के दश अध्ययन फरमाये हैं यथा - मृगापुत्र यावत् अंजू तो हे भगवन्! दुःखविपाक के प्रथम अध्ययन का यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है?
विवेचन - दुःखविपाक के दश अध्ययनों में से प्रथम अध्ययन में किस विषय का प्रतिपादन किया गया है? जम्बूस्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी प्रथम अध्ययनगत विषय का वर्णन आरंभ करते हैं - . तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबु अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं मियग्गामे णामं णयरे होत्था वण्णओ, तस्सणं मियग्गामस्स णयरस्स बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए चंदणपायवे णामं उज्जाणे होत्था सव्वोउय पुप्फ-फल-समिद्धे वण्णओ। तत्थ णं सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था चिराइय जहा पुण्णभद्दे। तत्थ णं मियग्गामे णयरे विजए णाम खत्तिए राया परिवसइ वण्णओ। तस्स णं विजयस्स खत्तियस्स मियाणामं देवी होत्था अहीण पडिपुण्ण पंचिंदिय सरीरा वण्णओ॥६॥
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