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२५-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
अब मुझे विश्वास हो गया है कि तू वीरपुत्र है। जब तु दूसरे शत्रु को परास्त कर चुका है तब अपने पिता का घात करने वाले शत्रु को भी अवश्य परास्त कर सकेगा । तेरा सामर्थ्य देखे बिना शत्रु के साथ भिड जाने की बात मैं कसे कहती?
क्षत्रियपुत्र माता का कथन सुन और उत्तेजित हो कहने लगा--माताजी | मैं अभी शत्रु को पराजित करने जाता ह। अपने पिता के वैर का बदला लिये विना मैं हगिज नहीं लौटू गा । इतना कह कर वह चल दिया ।
दूसरी ओर क्षत्रियपुत्र के पिता की हत्या करने वाले क्षत्रिय ने सुना-जिसे मैंने मार डाला था, उसका वार क्षत्रियपूत्र ऋद्ध होकर अपने पिता का वैर भजाने के लिए मेरे साथ लडाई करने आ रहा है। यह सुनकर उस क्षत्रिय ने विचार किया-वह वीर वडा वीर है और उसके शरण मे चला जाना ही हितकर है । इसी मे मेरा कल्याण है । इस तरह विचार करके वह क्षत्रियपुत्र के सामने गया और उसके अधीन हो गया । क्षत्रियपुत्र उस पितृघातक शत्रु को लेकर अपनी माता के पास पाया । उसने माता से कहा इसो क्षत्रिय ने मेरे पिता की हत्या की है। इसे पकड़ कर तुम्हारे पास ले आया हू । अव जो तुम कहो वही दड इसे दिया जाय ।
माता ने अपने पुत्र से कहा- इसी से पूछ देख कि इसके अपराध का इसे क्या दह मिलना चाहिए ?
पुत्र ने शत्रु से पूछा-बोलो अपने पिता के वैर का बदला तुमसे किस प्रकार लिया जाये ?
शत्रु ने उत्तर दिया- तुम अपने पिता के वैर का बदला उसी प्रकार लो, जिस प्रकार शरण मे आये हुए मनुष्य से