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१८-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
आगे चल कर वह पुत्र वीर क्षत्रिय बना ।
माता अपने बालक को जैसा चाहे वैसा बना सकती है और चाहे तो कायर भी बना सकती है। साधारणतया सिह का बालक सिंह ही बन सकता है और सूअर का बालक सूअर ही बनता है । उनमे किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता परन्तु मनुष्य को इच्छानुसार वीर या कायर बनाया जा सकता है।
क्षत्रियपत्नी ने अपने बालक को वीरोचित्त शिक्षा देकर वीर क्षत्रिय बनाया । क्षत्रियपुत्र वीर होने के कारण राजा का कृपापात्र बन गया ।
एक दिन राजा ने क्षत्रियपुत्र की वीरता की परीक्षा लेने का विचार किया । राजा ने सोचा-शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए क्षत्रियपुत्र को भेजने से एक पथ दो काज होंगे । एक तो शत्रुवश मे आ जायेगा, दूसरे क्षत्रिय - पुत्र की वीरता की परीक्षा भी हो जायगी।
इस प्रकार विचार कर राजा ने क्षत्रियपुत्र को शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए सेना के साथ भेज दिया । क्षत्रियपुत्र वीर था । वह तैयार होकर शत्र को जीतने के लिए रवाना हुा । उसने शत्रु की सेना को अपनी वीरता का परिचय दिया. परास्त किया और शत्रु राजा को जीवित ही कैद करके राजा के सामने उपस्थित किया। राजा क्षत्रियपुत्र का पराक्रम देख बहुत ही प्रसन्न हुआ । उसने उचित पुरस्कार देकर उसका सत्कार किया । सारे गाँव मे क्षत्रियपुत्र की वीरता की प्रशसा होने लगी । जनता ने भी उसका सम्मान किया । क्षत्रियपुत्र प्रसन्न होता हुआ अपने घर जाने के लिए निकला। रास्ते में वह विचार करने