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१६-सम्यक्त्वपराक्रम (४) . उसका त्याग किया जाता है ?
जिससे ससार की वृद्धि होती है वह कषाय है। अर्थात राग और द्वेप, जो कर्मवीज हैं और क्रोध, मान, माया, लोभ जो ससारवृद्धि के कारण है, उन्हें कषाय कहते हैं । जिन मलीन परिणामो द्वारा नरक आदि की प्राप्ति या वृद्धि होती है, वह मलीन परिणाम भी कपाय है । सक्षेप मे, जिस चित्तवृत्ति द्वारा संसार की वृद्धि हो वह कषाय है। शास्त्रकारों ने कपाय का स्वरूप बतलाते हुए कहा है
कोहो य माणो य अनिग्गहीया, माया य लोहो य पवडढमाणा। चत्तारि एए कसिणा कसाया,
सिचंति मूलाई पुणभवस्स ॥ अर्थात- पुनर्जन्म की जड को सीचने वाले क्रोध, मान, माया और लोभ यह चार कषाय हैं । क्रोध और मान का निग्रह करना कठिन है और माया तथा लोभवृत्ति बढती जाने वाली है अर्थात् माया तथा लोभ का कही अन्त नहीं है । यह हमेगा वढते ही चले जाते है। यह कषाय ससाग्वृद्धि करने वाले हैं , अत त्याज्य ही हैं।
कपाय की वृद्धि होने के कारण नरक आदि नीच गतियो मे तथा ससारचक्र मे परिभ्रमण करना पड़ता है । कषाय जीवात्मा को कर्मवधन से विशेष बद्ध करती है। कपाय के कारण कर्मवधन से छुटकारा नही मिलता । रागद्वेप से कर्म का बध होता है और कपाय से कर्मवधन मजदूत होता है । ससार चक्र मे से छूटने के लिए, पुनर्भव के फदे से मुक्त होने के लिए तथा कर्मवधन को ढीला करने