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१४-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
उत्तर--कषाय के त्याग से वीतराग भाव उत्पन्न होता है और वीतराग भाव को प्राप्त जीव के लिए दुःख और सुख समान बन जाते हैं ।
व्याख्यान कपाय-त्याग के विषय में विचार करने से पहले यह विचारणीय है कि आहारप्रत्यास्यान के बाद कपायप्रत्याख्यान के विषय मे प्रश्न क्यो किया गया है ? आहारप्रत्याख्यान के साथ कपायप्रत्याख्यान का क्या सम्बन्ध है ? इस प्रश्न के उत्तर में गास्त्रकार कहते हैं कि सभोगप्रत्याख्यान, उपविप्रत्याख्यान और माहारप्रत्याख्यान नभी सफल होते हैं, जब कषाय का त्याग कर दिया जाय । कपाय का त्याग किये विना ऊपर के सभी त्याग मफल सिद्ध नहीं होते। सभोग, उपवि और अ'हार आदि का त्याग भी कषाय का त्याग करने के उद्देश्य मे ही किया जाता है ।
सभोग में रहने से किसी को कुछ कहने और सुनने का प्रसग पा जाता है । इममे वचने के लिए संभोग का त्याग किया जाता है । उपधि रखने मे सदैव यह भय बना रहता है कि कोई उसे ले न जाये, इस भय से मुक्त होने के लिए उपवित्याग किया जाता है । आहार के लिए अनेक प्रकार के फ र कर्म भी करने पड़ते हैं और अनेक प्रकार की उपाधियां भी बहोरनी पडती हैं । इनसे छुटकारा पाने के लिए आहार का त्याग किया जाता है । परन्तु जव तक कपाय का त्याग नहीं किया जाता तब तक यह सब त्याग निष्फल है अथवा अल्प फलदायी ही सिद्ध होता है।
कपाय का त्याग करने पर भी अगर सभोग, उपधि